मानवीय जीवन में कर्मयोग की उपादेयत्ता

Authors

  • श्री जयपाल सिंह राजपूत सहायक प्राध्यापक, योग विज्ञान , चै.रणबीर सिंह विश्वविद्यालय, जीन्द
  • सुनीता रानी एम॰ए॰ योग द्वितीय वर्ष , चै.रणबीर सिंह विश्वविद्यालय, जीन्द

Keywords:

खेती-व्यापार, धंधा करना

Abstract

मनुष्य के अन्दर कर्म करने की स्वाभाविक प्रवृति है। कोई भी मनुष्य किसी भी काल में क्षण मात्र भी कर्म किये बिना नहीं रह सकता। क्योंकि समस्त मनुष्य मनुदाय प्रकृति जनित गुणों के द्वारा कर्म करने के लिए बाध्य किया जाता है। इस प्रकार जन्म से लेकर मृत्यु तक सभी मनुष्य प्रकृति के गुणों से बाधित होकर कर्म में लीन रहते हैं। कर्म ही मनुष्य के बंधन का कारण होता है। इससे प्रतीत होता है कि जब कर्म बन्धन का कारण होते है और उन्हें किये बिना भी नहीं रहा जा सकता तो मनुष्य सदा बंधन में बंधा रहेगा। किन्तु यह सही नहीं है। क्योंकि जिस प्रकार कर्म बंधन का कारण बनते हैं उसी प्रकार कर्म मुक्ति का कारण होते है।1 श्रीकृष्ण ने तो कहा है, “गहना कर्मणोगति” अर्थात् कर्म की गति गहन है, रहस्यमय है।2 प्रथम वे कौन से कर्म है जो मुक्तिदायक होते और दूसरे उन कर्मो के करने की विधि क्या है।” अर्थात कौन से कार्य करने चाहिए और कौन से कर्म नहीं करने चाहिए इसका निर्णय करने के लिए तुम्हारे पास शास्त्र प्रमाण है इस विषय में शास्त्रों की राय जानकर उन्हीं के अनुसार कर्म करने चाहिए।3 अब बात आती है कि कर्म क्या है कर्म शब्द ‘कृ’ धातु से बना है इसका सामान्य अर्थ करना व्यापार या हलचल होता है। ‘करना’ अर्थ में मनुष्य जो कुछ करता है, वही उसका कर्म है। कर्म के अर्थ में मनुष्य जो कुछ भी करता है- खाना-पीना, खेलना, रहना, श्वासोच्छवास करना, हंसना , रोना, बोलना, सुनना, चलना देना-लेना, जागना, मानना, मनन व अध्ययन करना, आज्ञा और निषेध करना, दान देना, यज्ञ-योग करना, खेती-व्यापार और धंधा करना

References

योगमहाविज्ञान क्ध् कामाख्या कुमार रणधीर प्रकाशन रेलवे रोड हरिद्वार 249401 वर्ष 2017

कर्मयोग- साधना-श्री स्वामी शिवानन्द सरस्वती प्रकाशक पत्रालयः शिवानन्दनगर -249192 जिलाः टिहरी गढ़वाल, उतरांचल हिमालय, भारत (वर्ष 2007) च्ंहम 41

योगमहाविज्ञान क्ध् कामाख्या कुमार गीता 17/24 रणधीर प्रकाशन रेलवे रोड हरिद्वार 249401 वर्ष 2017

मानव चेतना- डाॅ0 ईश्वर भारद्वाज प्क्ठछ 978.93.80190.64.8 संस्करण वर्ष-2017

प्रो0 विजयपाल शास्त्री- पातजल योग दर्शन गुरूकुल कागड़ी विश्वविद्यालय, हरिद्वार (उतरांचल) प्रकाशन 249404 संस्करण वर्ष-2006-2016

कर्मयोग साधना-श्री स्वामी शिवानन्द सरस्वती प्रकाशक पत्रालयः शिवानन्द नगर 249192 जिलाः टिहरी गढ़वाल, उतरांचल हिमालय, भातर वर्ष 2007 च्ंहम 9

प्रो0 विजयपाल शास्त्री- पातजल योग दर्शन च्ंहम 26

मानव चेतना - ईश्वर भारद्वाज च्ंहम 148.149

योग वशिष्ठ के सिद्वांत- नन्दलाल दशोरा प्रकाशक रणधीर प्रकाशन रेलवे रोड़ (हरिद्वार) संस्करण सन् 2017

प्रो0 विजयपाल शास्त्री- पातजल योग दर्शन च्ंहम 35

योग वशिष्ठ के सिद्वांत- नन्दलाल दशोरा

योग वशिष्ठ के सिद्वांत- नन्दलाल दशोरा

योग और योगी- डाॅ0 अनुजा रावत,-प्रकाशक सत्यम् पब्लिशिंग हाऊस छ.3ध्25 मोहन गार्डन, उत्तम नगर नई दिल्ली- 110059, संस्करण 2017 प्ैठछरू 978.93.83754.26.7

मानव चेतना - ईश्वर भारद्वाज च्ंहम 151

योगमहाविज्ञान क्ध् कामाख्या कुमार गीता प्रकाशन वर्ष-2017

योग और योगी- डाॅ0 अनुजा रावत च्ंहम.118

न हि कश्चित् क्षणमपि जातुनिष्ठत्य कर्मकृत्।

कार्यते हृावशः कर्म सर्वः प्रकतिजैर्गुवैः।। च्ंहम 118

बुद्धियुक्तों जहातीह उभे सुकृतदुष्कृते।

तस्याद्योगाय युज्यसव योगः कर्मसु कौशलम्। च्ंहम 119

योग और योगी - डाॅ अनुजा रावत च्ंहम 124

Downloads

Published

2018-12-30

How to Cite

राजपूत श. ज. स., & रानी स. (2018). मानवीय जीवन में कर्मयोग की उपादेयत्ता. Innovative Research Thoughts, 4(7), 66–70. Retrieved from https://irt.shodhsagar.com/index.php/j/article/view/969