ध्यान के प्रकार एवं महत्तव : एक विवेचना

Authors

  • श्र जयपाल स हिं राजपतू सहायक प्राध्यापक, योग विज्ञान , चै.रणबीर सिंह विश्वविद्यालय, जीन्द
  • संदीप एम॰ए॰ योग द्वितीय वर्ष , चै.रणबीर सिंह विश्वविद्यालय, जीन्द

Keywords:

र्ूनतमर्य र्ष्देि

Abstract

ध्यान हिन्दू धर्म, भारत की प्राचीन शैली और विद्या के सन्दर्भ में महर्षि पतंजलि द्वारा विरचित योगसूत्र में वर्णित अष्टांगयोग का एक अंग है। ये आठ अंग यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान तथा समाधि है। ध्यान का अर्थ किसी भी एक विषय की धारण करके उसमें मन को एकाग्र करना होता है। मानसिक शांति, एकाग्रता, दृढ़ मनोबल, ईश्वर का अनुसंधान, मन को निर्विचार करना, मन पर काबू पाना जैसे कई उद्दयेशों के साथ ध्यान किया जाता है। ध्यान का प्रयोग भारत में प्राचीनकाल से किया जाता है। ध्यान शब्द की व्युत्पत्ति ध्यैयित्तायाम् धातु से हुर्इ है। इसका तात्पर्य है चिंतन करना। लेकिन यहाँ ध्यान का अर्थ चित्त को एकाग्र करना उसे एक लक्ष्य पर स्थिर करना है। अत:, किसी विषय वस्तु पर एकाग्रता या ‘चिंतन की क्रिया’ ध्यान कहलाती है। यह एक मानसिक प्रक्रिया है जिसके अनुसार किसी वस्तु की स्थापना अपने मन:क्षेत्र में की जाती है। फलस्वरूप मानसिक शक्तियों का एक स्थान पर केन्द्रीकरण होने लगता है। यही ध्यान है। महर्षि पतंजलि कहते हैं-

 

References

योग दशनम

योग सत् : थिार्ी रार्देि : िाचथपनत लर्श्र

ध्यानयोग प्रकाश : लक्ष्र्ानदं

पातजल योग दशनम : थिार्ी सत्यापन

पातजल योग प्रदीप : ओर्ानदं तीथम

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Published

2018-12-30

How to Cite

राजपतू श. ज. स. ह., & संदीप. (2018). ध्यान के प्रकार एवं महत्तव : एक विवेचना . Innovative Research Thoughts, 4(7), 62–65. Retrieved from https://irt.shodhsagar.com/index.php/j/article/view/968