हठयोग की उपादेयता : एक विवेचना

Authors

  • डॉ. मंजू सुहाग सहायक प्राध्यापक, योग विज्ञान , चै.रणबीर सिंह विश्वविद्यालय, जीन्द
  • विकास एम॰ए॰ योग द्वितीय वर्ष , चै.रणबीर सिंह विश्वविद्यालय, जीन्द

Keywords:

शारीरिक, प्राचीनतम

Abstract

हठयोग शारीरिक और मानसिक विकास के लिए विश्व की प्राचीनतम प्रणाली है जिसका शताब्दियों से भारत के योगियों द्वारा अभ्यास किया गया है। मनोकायिक व्यायामों की यह एक अनन्यतम विधि है। हठयोग के आसन मानसिक प्रशांति, शारीरिक संतुलन और दिव्य प्रभाव के साथ प्रतिपादित होते हैं। इससे मेरुदंड लचीला बनता तथा स्नायु संस्थान के स्वास्थ्यय में वृद्धि होती है। योगासनों से स्नायओं के मूल का आंतरिक प्राणों द्वारा पोषण होता है। अतएव योगासन अन्य व्यायामों से पृथक है। हठयोग के नियमित अभ्यास से आप अपना खोया हुआ स्वास्थ्य और मानसिक शांति प्राप्त कर सकते हैं। आत्मा की गुप्त शक्तियों को उद्घाटित कर अपनी संकल्पशक्ति में वृद्धि कर सकते हैं और जीवन के सभी क्षेत्रों में सफलता प्राप्त कर आत्मसाक्षात्कार के उत्कृष्ट शिखर पर आसीन हो सकते हैं।झ झ हठयोग के आसन मन एवं शरीर के सूक्ष्म संबंध के पूर्ण ज्ञान पर आधारित एक अद्धभुत मनोशारीरिक व्यायाम प्रणाली है। अन्य सभी उच्च योग जैसे- कर्मयोग, भक्तियोग और ज्ञानयोग की सिद्धि के लिए हठयोग एक साधन है। मन और शरीर ही सारे मानवीय प्रयत्नों (आध्यात्मिक तथा भौतिक) का आधार है।
हठ शब्द की रचना ह और ठ दो रहस्यमय एवं प्रतीकात्मक अक्षरों से हुई है। ह का अर्थ सूर्य और ठ का अर्थ चंद्र है। योग का अर्थ इन दोनों का संयोजन या एकीकरण है।
सूर्य तथा चंद्र के एकीकरण या संयोजज का माध्यम हठयोग है। प्राण- (प्रमुख जीवनी शक्ति) ही सूर्य है। हृदय के माध्यम से यह क्रियाशील होकर श्वसन तथा रक्त संचार का कार्य संपादित करता है। अपान- ही चंद्र है जो शरीर से अशुद्धियों के उत्सर्जन और निष्कासन का कार्य संपादित करने वाली सूक्ष्म जीवनी शक्ति है।

References

ह0 प्रदीपिका- स्वात्माराम कृत कैवल्यधाम, लोनावला

घेरण्ड संहिता- स्वामी निरंजनानंद बिहार योग भारती, मुंगेर, बिहार

योग विज्ञान-स्वामी विज्ञागनेद सरस्वती, योग निकेतन टस्ट मुनि की रेती, ऋषिकेश

योग का आधार और उसने प्रयोग- डॉ0एच0आर0 नागेन्द्र, कैवल्यधाम, लोनावाला

हठयोग प्रदीपिका- स्वामी स्वात्माराम-कृत, संस्करण कर्ता- स्वामी दिगम्बर जी, प्रकाशक कैवल्यधाम।

आसन, प्राणायाम, मुद्राबंध- स्वामी सत्यानन्द सरस्वती।

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Published

2018-12-30

How to Cite

सुहाग ड. म., & विकास. (2018). हठयोग की उपादेयता : एक विवेचना . Innovative Research Thoughts, 4(7), 54–57. Retrieved from https://irt.shodhsagar.com/index.php/j/article/view/966