प्राणायाम की परिभाषा , प्रकाि एवं उपयोगिता
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योिAbstract
शिीि की गवशेष अवस्था को ंस्कृत में "आ न" नाम दिया िया है। ामान्य भाषा में कहा जाए तो "आ न" तनाव-िगहत औि अगिक मय तक ुगविा की गवशेष शािीरिक अवस्था का द्योतक है। ई ा े िू िी शताब्िी पूवव पातंजगल ने योि ूत्र ग्रंथ में योिाभ्या के ग द्धान्त गनिावरित दकए थे। उन्होंने ध्यानावस्था को ही 'आ न' कहा था औि शािीरिक गस्थगतयों को "योि व्यायाम" की ंज्ञा िी थी। तथागप ामान्य तौि पि दिय योिाभ्या ों को भी "आ न" ही कहा जाने लिा।
आ न मां पेगशयों, जोडों, हृिय-तंत्र प्रणाली, नागियों औि लग का- ंबंिी प्रणाली के ाथ- ाथ मन, मगस्तष्क औि चिों (ऊजाव-केन्रों) के गलए भी लाभिायक हैं। ये मन: कार्मवक व्यायाम हैं जो म्पूणव नाडी-प्रणाली को शक्त किने औि ंतुगलत किने के ाथ- ाथ आ न-कतावओं के मन-मगस्तष्क को भी शांत औि गस्थि िखते हैं। इन योिा नों का प्रभाव ंतोषी-वृगि, मन की ुस्पष्टता, तनावमुगक्त औि आन्तरिक स्वतंत्रता औि शांगत में परिलगित होता है।
References
योि प्रभाकि - स्वामी केशवानन्ि
योि गवज्ञान - स्वामी गवज्ञानन्ि िस्वती
मुगक्त के चाि ोपान - स्वामी त्यानन्ि
योि िशवन - िीता प्रे िोिखपुि
पातंजल योिपरीप - िीता प्रे िोिखपुि
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