समसामयिक समस्याएँ और प्राणायाम
Keywords:
प्राण, शक्तिAbstract
प्राण हमारी जीवनी शक्ति है। इसका विस्तार एवं नियमन करना ही प्राणायाम है। मनुष्य को प्रत्येक कार्य करने के लिए शक्ति की आवश्यकता हैं। आधुनिक युग में अधिकतर मनुष्य के पास शक्ति की कमी है। वह लगातार बहुत घण्टों तक मानसिक व शारीरिक कार्य करता है। यदि वह प्राणायाम करें तो इससे उसके शरीर के अन्दर अपार शक्ति एवं सामथ्र्य आ जाता हैं। प्राणायाम के अभ्यास से हमारा शरीर ऊर्जावान रहता है और चिŸा निर्मल रहता हैं। यदि मनुष्य नियमित दिनचर्या बनाए तो उसके पास नकारात्मक बातें सोचने के लिए समय हीे नहीं रहेगा। तलाक, आत्महत्या, बलात्कार, यौन-शोषण आदि समस्याएँ दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है जो कि सभ्य समाज के लिए एक कलंक हैं। इन समस्याओं के निराकरण के लिए हमें महर्षि पतंजलि द्वारा वर्णित अष्टांग योग के चैथे आयाम-प्राणायाम को जीवन में अपनाते है तो आधुनिक सामाजिक समस्याओं को पूर्णतः समाप्त किया जा सकता है और वैदिक सारवाणी’’ सर्वेभवन्तु सुखिनः सर्वेसन्तुनिरामयाः’’ अर्थात् सभी जन सुखी व निरोग हो को सार्थक सिद्ध किया जा सकता हैं।
References
यदा संहारते चायं कुर्मोडड्गानीव सर्वशः।
इन्द्रियाणीन्द्रियार्थेभ्यस्तस्य प्रज्ञा प्रतिष्ठिता।।
श्रीमद्भगवत्गीता 2/58
हृदि प्राणो वसेत्रित्यमानो गुदमण्डले।
समानो नाभिदेशे तु उदानः कण्ठमध्यतः।।
व्यानो व्यापीशरीरेषु प्रधानाः प´्चवायवः
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पातंजलयोगप्रदीप, स्वामी ओमानन्दतीर्थ, पृ0 266
अपाने जुहति प्राणं प्राणेडयानं तथापरे।
प्राणापानगति रुद्ध्वा प्राणायाम परायणाः।।
श्रीमदभगत्गीता 4/29
हिरदै में अस्थान है, प्राणवायु का जान।
वाके रोंके सतरुकैं, वायुन में परधानः।।
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तस्मिन् सति श्वास प्रश्वासयोर्गति विच्छेदः प्राणायामः।
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ततः क्षीयते प्राकाशावरणम्।
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ज्ञानेन तु तदज्ञानं येषां नाशितमात्मनः।
तेषामादित्यवज्ज्ञानं प्रकाशयति तत्परम्।।
श्रीमद्भगवत्गीता, 4/16
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पात´जलयोगप्रदीप, स्वामी ओमानन्दतीर्थ, पृ0 520
धारणासुु च योग्यता मनसः।
पतंजल योगसूत्र, महर्षि पतंजलि, 2/53