सामान्य जीवन में योग का महत्व एवं आवश्यकतााः एक विवेचना
Keywords:
योग, वशक्षकोंAbstract
योगासन शरीर और मन को स्वस्थ रखने की प्राचीन भारतीय प्रणाली है। शरीर को ककसी ऐसे आसन या वस्थवत में रखना वजससे वस्थरता और सुख का अनुभव हो योगासन कहलाता है। योगासन शरीर की आन्तररक प्रणाली को गवतशील करता है। इससे रक्त-नवलकाएँ साफ होती हैं तथा प्रत्येक अंग में शुद्ध वायु का संचार होता है वजससे उनमें स्फूर्ति आती है। पररणामताः व्यवक्त में उत्साह और कायि-क्षमता का ववकास होता है तथा एकाग्रता आती है।
योग का अथिाः योग¸ संस्कृत के यज् धातु से बना है वजसका अथि है संचावलत करना¸ सम्बद्ध करना¸सवम्मवलत करना अथवा जोड़ना। अथि के अनुसार वववेचन ककया जाए तो शरीर एवं आत्मा का वमलन ही योग कहलाता है। यह भारत के छाः दशिनों वजन्हें षड्दशिन कहा जाता है¸ में से एक है। अन्य दशिन हैं-न्याय¸ वैशेवषक¸ सांख्य¸ वेदान्त एवं मीमांसा। इसकी उत्पवि भारत में लगभग 5000 ई0 पू0 में हुई थी। पहले यह ववद्मा गुरू-वशष्य परम्परा के तहत पुरानी पीढी से नई पीढी को हस्तांतररत होती थी। लगभग 200 ई0पू0 में महर्षि पतंजवल ने योग-दशिन को योग-सूत्र नामक ग्रन्थ के रूप में वलवखत रूप में प्रस्तुत ककया। इसवलए महर्षि पतंजवल को ‘योग का प्रणेता’ कहा जाता है। आज बाबा रामदेव योग नामक इस अचूक ववद्मा का देश-ववदेश में प्रचार कर रहे हैं।
References
क्या है योग (वहन्दी) आटि ऑफ वलसवंग।
वशव हैं योग का प्रारम्भ (वहन्दी) वेबदुवनया।
वशवसंवहता, 5/11
गोरक्षशतकम्
योग क्या है (वहन्दी) वेबदुवनया।
Downloads
Published
How to Cite
Issue
Section
License
This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial 4.0 International License.