हठ योग ग्रंथों में वर्णित योग आसन : एक विवेचनात्मक अध्यन

Authors

  • आचार्य डाॅ0 विरेन्द्र कुमार विभागाध्यक्ष (योग विज्ञान), चै0 रणबीर सिंह विष्वविद्यालय, जीन्द
  • नवीन एम.ए. योग विज्ञान, शोध छात्र, चै0 रणबीर सिंह विष्वविद्यालय, जीन्द

Keywords:

हठयोग, योगविद्या भारतीय

Abstract

योगविद्या भारतीय ऋषि मुनियों की जीवन चर्या रही है। योगविद्या का स्थान युगों पूर्व भी शीर्ष पर था और आज भी शीर्ष पर ही है और भविष्य में भी रहेगा, इसमें किंचित भी संदेह नहीं है। आध्यात्मिक दृष्टि से योग से तात्पर्य ‘समाधि’ है। अर्थात ् समाधिपूर्वक आत्मसाक्षात्कार एवं आत्मसाक्षात्कारपूर्वक स्वरूपस्थिति को प्राप्त कर लेना ही योग है। लौकिक दृष्टि से योग शब्द का अर्थ संयोग अथवा मेल से है। वस्तुतः योग अस्मिता वृत्ति से निरोध भी है, यह योग के वियोग की घटना है। गूढ ़ अर्थाे में, यही संयोग का वियोग ही योग है। योग के विषय में ज्ञान कराने वाले अनेक मार्ग हैं यथा, राजयोग, हठयोग, लययोग, मंत्रयोग, भक्तियोग आदि योग की महत्ता और इसमें बताई गई प्रक्रियाओं का वर्णन, श्रुति, स्मृति, व पुराणों में पर्याप्त रूप से मिलती है। ऋग्वैदिक काल को भारतीय संस्कृति के साथ-साथ समस्त मानव सभ्यता का उद्गमकाल माना जाता है। वस्तुतः साधना चाहे किसी भी ढंग से की जाये, जब तन दैहिक आसाक्ति से छुटकारा नहीं मिल जाता, मन की चंचलता तिरोहित नहीं हो जाती, तबत क योग मार्ग में प्रगति, आत्म साक्षात्कार संभव नहीं। मन का विज्ञान ‘राजयोग’ है और आज के युग में मानव कल्याण का समाचीन साधन जो है वह राजयोग को उच्च स्थिति को प्राप्त कराने में सहायक हठयोग है। अति प्राचीन काल से ही अपनी विशिष्ट आध्यात्मिक छवि को बनाये रखने के कारण भारतवर्ष एक अध्यात्म-प्रधान देश के रूप में विख्यात रहा है। चैदहवीं-15वीं शताब्दी में योग का पक्ष धूमिल हो चला था और इसी समय में ‘श्रीस्वात्माराम’ ने हठयोग के सही पक्ष को जन सामान्य एवं विद्धानों के समक्ष रखा। स्वात्माराम जी के अन ुसार हठयोग व राजयोग अलग-अलग पक्ष नहीं वरन एक द ूसरे के लिये ही है दोनों की चरम परिणति समाधि में ही होती है।

 

References

ह0 प्रदीपिका- स्वात्माराम कृत कैवल्यधाम, लोनावला

घेरण्ड संहिता- स्वामी निर ंजनानंद बिहार योग भारती, मुंगेर, बिहार

योग विज्ञान-स्वामी विज्ञागन ेद सरस्वती, योग निकेतन टस्ट मुनि की रेती, ऋषिकेश

योग का आधार और उसन े प्रयोग- डॉ0एच0आर0 नागेन्द्र, कैवल्यधाम, लोनावाला

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Published

2018-12-30

How to Cite

आचार्य डाॅ0 विरेन्द्र कुमार, & नवीन. (2018). हठ योग ग्रंथों में वर्णित योग आसन : एक विवेचनात्मक अध्यन. Innovative Research Thoughts, 4(7), 131–135. Retrieved from https://irt.shodhsagar.com/index.php/j/article/view/1392