प्रत्याहार का परिणाम एवं महत्व : एक विवेचना
Keywords:
पााँच इंद्रियााँ, उजााAbstract
अष्ांगयोग का पांचवां अंग प्रत्याहार है। यम, वनयम, आसन, प्राणायाम और प्रत्याहार यह पांच योग के बाहरी अंग हैं अर्ाात योग में प्रवेश करने की भूवमका मात्र। वासनाओं की ओर जो इंद्रियां वनरंतर गमन करती रहती हैं, उनकी इस गवत को अपने अंदर ही लौटाकर आत्मा की ओर लगाना या वथर्र रखने का प्रयास करना प्रत्याहार है। वजस प्रकार कछुआ अपने अंगों को समेट लेता हैं उसी प्रकार इंद्रियों को इन घातक वासनाओं से ववमुख कर अपनी आंतररकता की ओर मोड़ देने का प्रयास करना ही प्रत्याहार है। इंद्रियों के व्यर्ा थखलन को रोकें और उसे उस द्रदशा में लगाएं वजससे आपका जीवन सुख और शांवतमय व्यतीत हो सार् ही आप सेहतमंद बने रहें।
References
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योग पररचय-पीताम्प्बर झा
सरल योगासन- डाव्म् ई‛वर भारद्वाज
आसन प्राणायाम- देवव्रत आचाया
आसन, प्राणायाम, मुिा बन्ध- थवामी सत्यानन्द
पंतजल योग ववमशा ववजयपाल शास्त्री
ध्यान योग प्रकाश : लक्षमणानन्द
योग दशान : राजवीर शास्त्री
पतंजल योग दशान : थवामी सत्यपवत पररव्राजक
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