प्रत्याहार का परिणाम एवं महत्व : एक विवेचना

Authors

  • डा0 विरेन्द्र कुमार विभागाध्यक्ष योग विज्ञान चै. रणबीर सिंह विश्वविद्यालय, जीन्द।
  • लक्ष्मी देवी एम॰ए॰ योग द्वितीय वर्ष , चै. रणबीर सिंह विश्वविद्यालय, जीन्द।

Keywords:

पााँच इंद्रियााँ, उजाा

Abstract

अष्ांगयोग का पांचवां अंग प्रत्याहार है। यम, वनयम, आसन, प्राणायाम और प्रत्याहार यह पांच योग के बाहरी अंग हैं अर्ाात योग में प्रवेश करने की भूवमका मात्र। वासनाओं की ओर जो इंद्रियां वनरंतर गमन करती रहती हैं, उनकी इस गवत को अपने अंदर ही लौटाकर आत्मा की ओर लगाना या वथर्र रखने का प्रयास करना प्रत्याहार है। वजस प्रकार कछुआ अपने अंगों को समेट लेता हैं उसी प्रकार इंद्रियों को इन घातक वासनाओं से ववमुख कर अपनी आंतररकता की ओर मोड़ देने का प्रयास करना ही प्रत्याहार है। इंद्रियों के व्यर्ा थखलन को रोकें और उसे उस द्रदशा में लगाएं वजससे आपका जीवन सुख और शांवतमय व्यतीत हो सार् ही आप सेहतमंद बने रहें।

References

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योग ववज्ञानं : थवामी वववेकानंद सरथवती

भवक्तसागर- थवावम चरणदास

योगासन ववज्ञान- थवावम धीरेन्ि ब्रह्मचारी

योग पररचय-पीताम्प्बर झा

सरल योगासन- डाव्म् ई‛वर भारद्वाज

आसन प्राणायाम- देवव्रत आचाया

आसन, प्राणायाम, मुिा बन्ध- थवामी सत्यानन्द

पंतजल योग ववमशा ववजयपाल शास्त्री

ध्यान योग प्रकाश : लक्षमणानन्द

योग दशान : राजवीर शास्त्री

पतंजल योग दशान : थवामी सत्यपवत पररव्राजक

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Published

2018-12-30

How to Cite

डा0 विरेन्द्र कुमार, & लक्ष्मी देवी. (2018). प्रत्याहार का परिणाम एवं महत्व : एक विवेचना . Innovative Research Thoughts, 4(7), 125–130. Retrieved from https://irt.shodhsagar.com/index.php/j/article/view/1391