यौगिक ग्रन्थों में चक्रों का वर्णन

Authors

  • आचार्य डाॅ0 विरेन्द्र कुमार विभागाध्यक्ष (योग विज्ञान), चै0 रणबीर सिंह विष्वविद्यालय, जीन्द
  • रौनक एम.ए. योग विज्ञान, शोध छात्र, चै0 रणबीर सिंह विष्वविद्यालय, जीन्द

Keywords:

ग्रन्थों, चक्रों

Abstract

चक्र वे ऊर्जा केन्द्र है, जिसके माध्यम से अंतरिक्ष ब्रह्माण्ड की उर्जा शरीर में प्रवाहित होता है। ’’दैनिक जीवन में योग का अभ्यास’’ इन केन्द्रों को जागृत करता है। जो सभी में और हर एक व्यक्ति में विद्यमान है। चक्रम (चक्र) एक संस्कृत का शब्द हे जिसका अर्थ ’पहिया’ या ’घुमना’ है। चक्र प्राण या आत्मिक उर्जा का केन्द्र है। ये नाड़ियों के संगम स्थान भी होती है। चक्रों का हमारे अस्तित्व के कई स्तरों पर महत्वपूर्ण प्रभाव होता है। पहला स्तर शारीरिक है। शरीर में जिस स्थान पर चक्र स्थित है वहाँ ग्रन्थियाँ, अवयव और नाड़ियाँ है। जिनको व्यायामों, ध्यान, आसनों और मंत्रों से सक्रिय किया जा सकता है। दूसरा स्तर नक्षत्रीय स्तर है। चक्रों का स्पंदन ओर उर्जा प्रवाह हमारी चेतना और शारीरिक स्वास्थ्य को भी प्रभावहित करते हैं। गलत भोजन, बुरी संगत और नकारात्मक विचार चक्रों उर्जा को कम या बाधित कर देते हैं। जिससे चेतना अव्यवस्थित और बीमार हो सकता है। तीसरा महत्वपूर्ण स्तर आध्यात्मिक है जिससे नैसर्गिक ज्ञान, बुद्धि और जानकारी प्राप्त होती है। वह उर्जा जो सभी चक्रों को जाग्रत करती हैं कुंडलिनी कहलाती है।

References

घरेण्ड सहितां, पृष्ठ संख्या 385 से 390

शिव सहितां।

सिद्धसिद्धान्त पद्धति।

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Published

2018-12-30

How to Cite

आचार्य डाॅ0 विरेन्द्र कुमार, & रौनक. (2018). यौगिक ग्रन्थों में चक्रों का वर्णन. Innovative Research Thoughts, 4(7), 121–125. Retrieved from https://irt.shodhsagar.com/index.php/j/article/view/1390