योगसाधना का महत्त्व

Authors

  • जयपाल सिंह राजपूत सहायक प्राध्यापक, योग विज्ञान , चै. रणबीर सिंह विश्वविद्यालय, जीन्द।
  • तमन्ना मलिक एम॰ए॰ योग द्वितीय वर्ष , चै. रणबीर सिंह विश्वविद्यालय, जीन्द।

Keywords:

योगसाधना, वृत्तियाँ, अष्टांग, स्वरूपावस्था

Abstract

प्रस्तुत षोध अध्ययन का उद्देष्य मानव को संसार सागर से मुक्ति का हेतु योग साधना के महत्त्व पर प्रकाष डालना है तथा योगाभ्यास से एक साथ अनेक षारीरिक, मानसिक व आध्यात्मिक लाभ प्राप्त हो सामान्य मानवता के स्तर से महामानव का स्तर साधक कैसे प्राप्त कर लेता है यह योग साधनारत साधकों को यहां दर्षाया गया है।योग का महत्त्व प्राचीन काल में भी था और आधुनिक काल का परिवेश देखते हुए योगरूपी साधना का महत्त्व और अधिक बढ़ गया है। यह ऐसी विद्या है जिसकी सहायता से पंचक्लेशों को तनु करके मनुष्य के चित्त की वृत्तियों का षमन हो, वह स्वयं का साक्षात्कार करके परमात्मा में लीन हो सके। योग शब्द लघु है किंतु इसमें गहन अर्थ समाहित है। ब्रह्मतत्व की प्राप्ति हेतु, साधक की अभिलाषा अनुसार, योगसाधना के विभिन्न मार्ग जैसे कि राजयोग, भक्तियोग, कर्मयोग, ज्ञानयोग, सहजयोग, कुण्डलिनी योग इत्यादि का वर्णन योग ग्रन्थों में मिलता है। जिनमें मुख्यतः गीता, योगसूत्र, उपनिषद आदि आते हैं। इसी प्रकार शोधन क्रियाएँ, बंध-मुद्रा, आसन, प्राणायाम, धारणा, ध्यान आदि इनका उल्लेख विभिन्न यौगिक ग्रन्थों में मिलता है। महर्षि पंतजलिकृत योगसूत्र में अष्टांग योग जिसका उद्देश्य राजयोग की प्राप्ति है, जोकि समाधि अवस्था में आत्म साक्षात्कार कर मोक्षत्व को प्राप्त करना है। संसार में बन्धन तथा राग का मूल कारण मन है। एक योगी इस मन को आत्मकल्याण व परमात्मा चिंतन में लगाकर इस संसारिक भटकाव की स्थिति से अलग हो। योग साधना द्वारा ईष्वरोन्मुख रहने का निरंतर प्रयास करता रहता है।

References

NA

Downloads

Published

2018-12-30

How to Cite

जयपाल सिंह राजपूत, & तमन्ना मलिक. (2018). योगसाधना का महत्त्व. Innovative Research Thoughts, 4(7), 113–116. Retrieved from https://irt.shodhsagar.com/index.php/j/article/view/1388