चित्त प्रसादन के उपायों की विवेचना

Authors

  • श्री जयपाल सिंह सहायक प्राध्यापक, योग विज्ञान , चै. रणबीर सिंह विश्वविद्यालय, जीन्द।
  • रिम्पी एम॰ए॰ योग द्वितीय वर्ष , चै.रणबीर सिंह विश्वविद्यालय, जीन्द।

Keywords:

योगदर्षन, महर्षि पतंजलि

Abstract

योगदर्षन के रचयिता महर्षि पतंजलि हैं, पातव्म्जल योग सूत्र में चार पाद हैं। प्रथम पाद का नाम है - समाधिपाद, द्वितीय- साधनपाद, तृतीय- विभूतिपाद तथा चतुर्थ - कैवल्यपाद है। सर्वप्रथम पंतजलि के अनुसार चित्त की वृत्तियों को रोकना या नियन्त्रित करना ‘योग’ है अर्थात् चित्त की वृत्तियाॅं जो सतत् चलायमान अतएव क्षिप्त आदि रहा करती हैं, को अभ्यास के द्वारा नियन्त्रित करना या अन्तर्मुखी कर लेना, जिससे कि सभी वृत्तियां नियन्त्रित हो जाएॅं और अत्यन्त सघन एकाग्रता (समाधि) का निर्माण हो जाएॅ, योग है। पतंजलि ने इसके लिये जिस सूत्र का निर्देष किया वह है ”योगष्चित्तवृत्तिनिरोधः“। इस सूत्र में प्रयुक्त तीनों शब्द - चित्त, वृत्ति और निरोध की संक्षिप्त व्याख्या आवष्यक है।

References

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Published

2018-12-30

How to Cite

श्री जयपाल सिंह, & रिम्पी. (2018). चित्त प्रसादन के उपायों की विवेचना . Innovative Research Thoughts, 4(7), 110–112. Retrieved from https://irt.shodhsagar.com/index.php/j/article/view/1386