योग विक्षेप एवं चित्त प्रसादन के उपाय: एक विवेचना
Keywords:
पतंजलि, फलस्वरूपAbstract
महर्षि पतंजलि ईश्वर के नाम और स्वरूप- चिंतन के फलस्वरूप समाप्त होने वाले अंतराय (विघ्रों) के संदर्भ मे बताते है और यहस्पष्ट करते है किकिस प्रकार साधकइन विघ्रो को समाप्त कर अपने चित्त को निर्मल कर सकता है। इसी का वर्णन करते हुए वहनौ प्रकार के अंतरायों का वर्णन करते है और उनके साथ होने वाले दूसरे अन्य पाॅच विघ्रो का भी वर्णन करते है। उन विघ्रो को दूर करने हेतु वहसाधककी योग्यता अनुसार विभिन्न उपायो का वर्णन करते है। इन्ही विघ्रो को योगान्तराय तथा इन्हे दूर करने के उपाय को चित्त प्रसादन का उपाय कहा है।
References
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