योग विक्षेप एवं चित्त प्रसादन के उपाय: एक विवेचना

Authors

  • श्री जयपाल स िंह राजपूत सहायक प्राध्यापक, योग विज्ञान , चै. रणबीर सिंह विश्वविद्यालय, जीन्द।
  • अनुराधा एम॰ए॰ योग द्वितीय वर्ष , चै. रणबीर सिंह विश्वविद्यालय, जीन्द।

Keywords:

पतंजलि, फलस्वरूप

Abstract

महर्षि पतंजलि ईश्वर के नाम और स्वरूप- चिंतन के फलस्वरूप समाप्त होने वाले अंतराय (विघ्रों) के संदर्भ मे बताते है और यहस्पष्ट करते है किकिस प्रकार साधकइन विघ्रो को समाप्त कर अपने चित्त को निर्मल कर सकता है। इसी का वर्णन करते हुए वहनौ प्रकार के अंतरायों का वर्णन करते है और उनके साथ होने वाले दूसरे अन्य पाॅच विघ्रो का भी वर्णन करते है। उन विघ्रो को दूर करने हेतु वहसाधककी योग्यता अनुसार विभिन्न उपायो का वर्णन करते है। इन्ही विघ्रो को योगान्तराय तथा इन्हे दूर करने के उपाय को चित्त प्रसादन का उपाय कहा है।

References

स्वामी ओमानंद तीर्थ पाताजल योगप्रदीपगीता प्रेस गोरखपुर उ0प्र0 पेज 217

स्वामी ओमानंद तीर्थ पाताजल योगप्रदीपगीता प्रेस गोरखपुर उ0प्र0 पेज 218

स्वामी ओमानंद तीर्थ पाताजल योगप्रदीपगीता प्रेस गोरखपुर उ0प्र0 पेज 225

स्वामी ओमानंद तीर्थ पाताजल योगप्रदीपगीता प्रेस गोरखपुर उ0प्र0 पेज 249

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Published

2018-12-30

How to Cite

राजपूत श. ज. स. ि., & अनुराधा. (2018). योग विक्षेप एवं चित्त प्रसादन के उपाय: एक विवेचना. Innovative Research Thoughts, 4(7), 98–102. Retrieved from https://irt.shodhsagar.com/index.php/j/article/view/1383