श्रीमद्भगवदगीता में जीवन मूल्य और पुरूषार्थ-चतुष्टय

Authors

  • श्री जयपाल सिंह राजपूत सहायक प्राध्यापक, योग विज्ञान , चै. रणबीर सिंह विश्वविद्यालय, जीन्द।
  • सरीता देशवाल एम॰ए॰ योग द्वितीय वर्ष , चै. रणबीर सिंह विश्वविद्यालय, जीन्द

Keywords:

जीवन, युद्ध

Abstract

किसी भी इंसान के जीवन में मूल्यों का बड़ा योगदान होता है। क्योंकि इन्हीं के आधार पर अच्छा-बुरा या सही-गलत की पहचान की जाती है। शाब्दिक अर्थ में देखा जाऐ तो मूल्य का अर्थ कीमत होता है। परन्तु मानवता के विकास में इन जीवन मूल्यों का अमूल्य योगदान होता है। हिन्दुओं के धार्मिक ग्रंथ श्रीमदभगवद गीता की पृष्ठभूमि महाभारत का युद्ध है। भारत के इतिहास का ऐसा  जो दो परिवारों के बीच घटित हुआ था। जिसका उद्देश्य था धर्म का पालन करना तथा सत्य को जीत हासिल करना। आज भी मनुष्य जब विषम परिस्थितियों में उलझा हातेा है तो गीता का ज्ञान उसको सही रास्ता दिखाता है। गीता में जो जीवन मूल्य वर्णित है वे आज भी अपनी प्रासंगिकता बनाए हुए है। तभी तो गीता का प्रचार-प्रसार संपूर्ण जगत में हो पाया है। भारत ही नहीं विश्व के अन्य देशों में भी गीता पर कार्य हो रहा है। गीता एक ग्रंथ है जो देशकाल समयकाल की परिधि में न बंधकर संपूर्ण मानवता को स्फूर्तिदायक संदेश देता है।

References

रामायण

गीता

श्रीमद्भगवदगीता

श्रीमद्भगवदगीता

श्रीमद्भगवदगीता

श्रीमद्भगवदगीता 2/3

उपरिवत अध्याय 2 श्लोक 5वां (2/5)

एकदशेपनिषद तृतीय प्र. पाठक खण्ड 16-17

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गोस्वामी तुलसीदास, रामचरितमानस, बाल काण्ड

श्रीमद्भगवदगीता अध्याय 1, श्लोक क्रमांक 66

श्रीमद्भगवदगीता

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Published

2018-12-30

How to Cite

राजपूत श. ज. स., & सरीता देशवाल. (2018). श्रीमद्भगवदगीता में जीवन मूल्य और पुरूषार्थ-चतुष्टय. Innovative Research Thoughts, 4(7), 89–93. Retrieved from https://irt.shodhsagar.com/index.php/j/article/view/1380