आत्मिक शुद्धि में यम-नियम का महत्व

Authors

  • श्री जयपाल सिंह राजपूत सहायक प्राध्यापक, योग विज्ञान, चौ० रणबीर सिंह विश्वविद्यालय (जीन्द)
  • संकेत कुमारी एम.ए. योग द्वितीय वर्ष, चौ० रणबीर सिंह विश्वविद्यालय (जीन्द)

Keywords:

महर्षि पंचजलि के अनुसार यम, स्वामी चरणदास

Abstract

जिस प्रकार सांसारिक कार्यों की सफलता उचित तथा नियमित दिनचर्या पर निर्भर है एवं प्रेत्यक योगभूमि का सेवन करने के लिए यम औरह नियम का आचरण करना अत्यावश्यक है। यघपि योगदर्शन और शास्त्रों से इनका विवरण किया भी है। यदि हम गहराई से देखे तो योग के आठ अंग कोई साधारण कार्य नहीं है बल्कि इनका कार्य तो आत्मा से परमात्मा करना है। हमारे ऋषि-मुनियों ने योग को अलग-अलग बाँट कर फिर इन्हे एक सूत्र पिरोया ताकि व्यक्ति इन आठों अंगो के अलग-अलग कार्यों के माध्यम से शारीरिक स्वास्थय से लेकर मोक्ष तक को प्राप्त कर सके। अष्टाग योग को अपनाकर हम स्वस्थ ही नहीं इस घोर जन्म-मरण के चक्कर से सदा के लिए मुक्ति पर सकते है।

References

स्वामी ओमानंदः पातजल योग रहस्य

बलदेव उपाध्यायः भारतीय दर्शन (शारदा मंदिर काशी 1957)

योग विज्ञान प्रदिपिका डा विजय पाल शास्त्री

भक्ति सागर-चरण दास जी

अमर कोष(10/10)

योग सूत्र(2/30)

व्यास भाष्य(2/30)

मनुस्मृति (4/138)

शाण्डिल्योपनिषद

व्यास भाष्य(2/32)

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Published

2018-12-30

How to Cite

राजपूत श. ज. स., & कुमारी स. (2018). आत्मिक शुद्धि में यम-नियम का महत्व. Innovative Research Thoughts, 4(7), 77–80. Retrieved from https://irt.shodhsagar.com/index.php/j/article/view/1377