यौगिक साहित्य में वर्णित चित्त प्रसादन के विविध साधन।
Abstract
दुःखों की आत्यन्तिक निवृत्ति और आनन्दमय परमात्मा की प्राप्ति चाहने वाले को चित्त निर्मल करना होगा। इसके अतिरिक्त और कोई अन्य उपाय नहीं है, परन्तु चित्त स्वभाव से ही बड़ा चंचल और बलवान् है। चित्त को वश में करना कठिन है, असंभव नहीं और इसके वश में किए बिना दुःखों की निवृत्ति नहीं होती। अतएव इसे वश में करना चाहिए। इसके लिए सबसे पहले इसका साधारण स्वरूप और स्वभाव जानने की आवश्यकता है। यह आत्म और अनात्म पदार्थ के बीच में रहने वाली एक विलक्षण वस्तु है। यह स्वयं अनात्म और जड़ है, परन्तु बंधन और मोक्ष इसके अधीन है। जब मनुष्य योग दर्शन के नियमों के अनुसार ऐसी साधना कर लेता है जिससे चित्त पुरुष के इच्छानुसार किसी स्थान में रोकने से वहीं पर स्थिर रह जाए। इसी से चित्त उस विषय में प्रवृत्त होता है।
References
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स्वामी विवेकानन्द (राजयोग)
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