श्री मद् भगवत गीता में वर्णित ‘आत्म-संयम‘ का स्वरूप

Authors

  • जयपाल सिंह राजपूत Assi. Professor Department of Yog Science, CRSU, Jind
  • बबीता M.A Yog Student, Roll No. 3231, Department of Yog Science, CRSU, Jind

Keywords:

परमात्मा, आत्मिक

Abstract

परमात्मा ने सृष्टी की रचना कब और कितने वर्षो पहले की इस बारे स्पष्ट नहीं कहा जा सकता, परन्तु सृष्टि की रचना क्योकि इस बारे मे हमारे देश के महान ऋषि- मुनियो और संत महापुरूषो द्वारा बतलाया गया है कि इस संसार की उत्पति परमात्मा ने अपनी इच्छा से की है ताकि वह (परमात्मा) एक से अनेक हो सके। इस संसार का सबसे अमूल्य प्राणी मनुष्य को बनाकर इस धरती पर भेजा। परमात्मा ने मनुष्य को सबसे ज्यादा विवेक बुद्वि दी कि वह आत्मिक चितंन करता हुआ मोक्ष प्राप्त करके अपनी आत्मा को परमात्मा मे विलिन (एकाकार) कर सके।

References

श्रीमद् भगवत गीता श्लोक न0 6/6

श्रीमद् भगवत गीता श्लोक न0 6/7

श्रीमद् भगवत गीता श्लोक न0 6/10

श्रीमद् भगवत गीता श्लोक न0 6/45

श्रीमद् भगवत गीता श्लोक न0 6/47

डा0 इन्द्राणी

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Published

2018-09-30

How to Cite

राजपूत ज. स., & बबीता. (2018). श्री मद् भगवत गीता में वर्णित ‘आत्म-संयम‘ का स्वरूप. Innovative Research Thoughts, 4(6), 12–15. Retrieved from https://irt.shodhsagar.com/index.php/j/article/view/944