स्वातंत्र्य और विद्रोह के सन्दर्भ में छायावादी काव्य का अध्ययन

Authors

  • Pinki

Keywords:

छायावादी काव्य, स्वातंत्र्य विद्रोह

Abstract

छायावादी काव्य एक ऐसा आधुनिक साहित्यिक आंदोलन है जो भारतीय साहित्य में विभिन्न समाजिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक परिवर्तनों को दर्शाने का कार्य करता है। इसकी उत्पत्ति 20वीं सदी के प्रारंभिक दशकों में हुई और इसने भारतीय साहित्य में एक महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त किया। स्वातंत्र्य और विद्रोह, जो उस समय के सामाजिक और राजनीतिक वातावरण का अंश था, छायावादी काव्य के लिए महत्वपूर्ण संदर्भ बने। स्वातंत्र्य के समय में, भारतीय समाज में बड़े परिवर्तन की भावना थी। इस समय के कवियों ने अपने काव्य में स्वातंत्र्य के आदर्शों को स्थापित किया और सामाजिक विषयों पर अपनी भावनाओं को व्यक्त किया। उन्होंने जातिवाद, विद्रोह, राजनीतिक अनियमितता आदि जैसे मुद्दों पर अपनी कलम से चित्रण किया। छायावादी कविताओं में विद्रोह की भावना भी गहराई से प्रकट होती है। कवियों ने अपने काव्य में समाज में पारंपरिक विचारों के खिलाफ उत्तेजना और आंदोलन के आवाज को उठाया। उन्होंने अपने शब्दों के माध्यम से स्वतंत्रता की भावना को प्रेरित किया और राष्ट्रीय अभिव्यक्ति के रूप में उसे स्थान दिया।

References

आत्मनेपद, अज्ञेय, पु० 43

तार-सप्तक, बच्ञेय, पू० 278

दस्तावेज, सं० विश्वनाथप्रसाद तिवारी, पृ० 62

साहित्य का परिवेश, अज्ञेय, पृ० 74

ऽ तार-सप्तक, सं० अज्ञेय, पृ० 6

न्ळब् ।चचतवअमक श्रवनतदंस

कविता के नये प्रतिमान, डॉ० नामवरसिंह, पृ० 76

आत्मनेपद, पृ० 27

दस्तावेज, सं० विश्वनाथप्रसाद तिवारी

आत्मनेपद, अज्ञेय, पृ० 26

Downloads

Published

2018-06-30

How to Cite

Pinki. (2018). स्वातंत्र्य और विद्रोह के सन्दर्भ में छायावादी काव्य का अध्ययन. Innovative Research Thoughts, 4(5), 440–434. Retrieved from https://irt.shodhsagar.com/index.php/j/article/view/939