वर्तमान वैश्विक परिदृश्य और भारतीय समाज विज्ञान की चुनौतिय

Authors

  • सुमन बाला

Keywords:

औद्योगिक, आधारित साम्यवादी

Abstract

विश्व में औद्योगिक क्रांति का प्रारम्भ पूँजीवाद प्रणाली के साथ हुआ किन्तु कालान्तर में यह शोषण का दर्शन बनकर रह गया और 1929-32 की महामंदी ने तो इस नकारा ही साबित कर दिया। इसके विपरीत माक्र्स के दर्शन पर आधारित साम्यवादी प्रणाली ने प्रेरणा और पहल की समस्याएं उत्पन्न कर दी। यह प्रणाली भी सोवियत यूनियन और इसके सहयोगी राज्यों के पतन के साथ शीघ्र ही समाप्त प्रायः हो गयी। आज की चीन साम्यवाद की बजाय बाजार अर्थव्यवस्था के काफी कुछ निकट आ गया है। अतः आज तो विभिन्न रूपों एवं प्रकारों में बाजारवाद ही चल रहा है। किन्तु हर क्षण वह अनेक कठिनाइयों व समस्याओं से ग्रस्त भी हो जा रहा है।

References

दादा भाई नौरौजी और रमेशचन्द्र दत्त की पुस्तकें ब्रिटिश राज का आर्थिक विश्लेषण हैं, हिन्द स्वराज के दर्शन से संबद्ध कुछ भी उनमें नहीं है। शेष सभी अठारह पुस्तकें दार्शनिक रचनाएं हैं जो सभी पश्चिमी चिंतकों की है।

गुजरात राजनीतिक परिषद् में भाषण, गोधरा, 3 नवंबर, 1917

उहरण के लिए देखें ‘गुजरात राजनीतिक परिषद् में भाषण, 3 नवम्बर 1917

चर्खे को ‘भविष्य के भारत की सामाजिक व्यवस्था’ का आधार बनाने की बात गाँधी 1940 में भी करते थे। रवीन्द्रनाथ टैगोर द्वारा की गई गुरु-गंभीर आलोचनाओं (देखें, इनका ‘‘स्वराज साधना’’ शीर्षक लेख) के बीस वर्ष बाद भी, बिना उसका कहीं उत्तर दिए।

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Published

2018-06-30

How to Cite

बाला स. (2018). वर्तमान वैश्विक परिदृश्य और भारतीय समाज विज्ञान की चुनौतिय. Innovative Research Thoughts, 4(5), 186–190. Retrieved from https://irt.shodhsagar.com/index.php/j/article/view/902