साहित्य, समाज एवं थर्ड जैंडर: दशा और दिशा
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ईश्वर की रचनाAbstract
ईश्वर की रचना का हिस्सा जो नर है न ही नारी वो जिसे हम किन्नर या ट्रासं जेडं र से सम्बाेि धत करते हैं। दोनांे वर्ग अर्थात्स्त्राी व पुरूष के गुणां े का सामंजस्य है ये वर्ग। इनका पहनावा, वेशभूषा इनकी भिन्नता की पहचान है। हिजड़ा या किन्नरों के अन्दर एक अलग गुण पाया जाता है। इनका रहन-सहन भी समाज में अन्य स्त्राी, पुरूषों से अलग होता है। और यह कोई नयी नहीं अपितु बहुत प्राचीन परम्परा का हिस्सा है। परन्तु यह भी सत्य है कि इनके जन्म के कारणो ं के विषय मे ं आज भी एक मत नहीं है। इनके जन्म से सम्बन्धित माना जाता है। जब कुंडली मे ं शुक्र व शनि हो और उन्हे ं गुरू और चन्द्र नहीं देखता तो व्यक्ति का जन्म किन्नरो ं मे ं माना जाता है। वहीं दूसरे मत के अनुसार शास्त्रा मे ं किन्नर का जन्म पूर्व जन्म के गुनाह का े बताया जाता है। पौराणिक कथाआंे मे ं भी किन्नरो ं का वर्णन मिलता है। महाभारत में भीष्म की मृत्यु का कारण किन्नर बताया जाता है जिसका नाम शिखडं ी था। मुगल शासकांे के समय भी किन्नरो ं के राज दरबार का पता चलता है। चाहंे स्त्राी या पुरूष की भाँति किन्नर रूपी तीसरे वर्ग का वर्णन चाहे पुराणो ं से हाते ा आ रहा है परन्तु यह भी सत्य है कि यह वर्ग समाज में सदैव घृणा, व्यंग्य व कष्ट पूर्ण जीवन व्यतीत करता आया है। कई बार अपनी वास्तविक पहचान छुपाता यह वर्ग स्वयं को कभी लड़का तो कभी लड़की बताने के लिए मजबूर है यह मजबूरी भी उन्हें समाज द्वारा दी गई है। न चाहते हुए भी परिवार स े उन्हे ं अलग कर दिया जाता है।
References
तीसरी ताली: प्रदीप सौरभ वाणी पब्लिकेशन।
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दैनिक भास्कर (अखबार): 14 अप्रैल, 2012
अमर उजाला: 27 नवम्बर, 2016
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