रूपक के दस रूप : एक विवेचना
Keywords:
नाटक, कमव सारे शास्त्रAbstract
अविनेय काव्य को रूप अथिा रूपक कहते हैं। "रूप्यते नाट्यते इवत रूपम्; रूपामेि रूपकम्" - इस व्युत्पवि के अनुसार दृश्य काव्यों की सामान्य संज्ञा "रूप" या "रूपक" है। रूपक दो प्रकार के होते हैं : 1. प्रकृवत, और 2. विकृवत। सिवलक्षण से सिाांग से पररपुष्ट दृश्य को प्रकृवतरूपक कहा गया है जैसे नाटक; और प्रकृवतरूपक के ढााँचे में ढले हुए परन्तु अपनी अपनी कुछ विशेषता वलए हुए दृश्य काव्य विकृवतरूपक कहे गए हैं। सामान्य वनयम है- "प्रकृवतिद् विकृवतिः किवव्या"।
References
नाट्यशास्त्र- िरतमुवन, गायकिाड़ ऑररयन्टल सीरीज, बड़ौदा।
दशरूपकम्- िॉ0 श्रीवनिास शास्त्री, सावहत्य िण्िार, सुिाष बाजार मेरठ-2,
Downloads
Published
2018-03-30
How to Cite
RANI, N. (2018). रूपक के दस रूप : एक विवेचना . Innovative Research Thoughts, 4(4), 378–383. Retrieved from https://irt.shodhsagar.com/index.php/j/article/view/851
Issue
Section
Articles
License
This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial 4.0 International License.