मौर्य काल की धार्मयक दशा : एक संक्षिप्त परिचर्
Keywords:
धार्मयक, कृक्षषAbstract
वैददक धमय औि गृह कृत्र् प्रधान थे। मेगस्थनीज़ के अनुसाि ब्राह्मणों का समाज में प्रधान स्थान था। दाशयक्षनक र्द्यक्षप संख्र्ा में कम थे दकन्तु वे सबसे श्रेष्ठ समझे जाते थे औि र्ज्ञ-कार्य में लगाए जाते थे। कौरिल्र् के अनुसाि त्रर्ी (अथायत् तीन वेदों) के अनुसाि आचिण किते हुए संसाि सुखी िहेगा औि अवसाद को प्राप्त नहीं होगा। तदनुसाि िाजकुमाि के क्षलए चोलकमय, उपनर्न, गोदान, इत्र्ादद वैददक संस्काि क्षनर्दयष्ट दकए गए हैं। ऋक्षत्वक, आचार्य औि पुिोक्षहत को िाज्र् से क्षनर्त वार्षयक वेतन क्षमलता था। वैददक ग्रंथों औि कमयकाण्ड का उल्लेख प्रार्ः तत्कालीन बौद्ध ग्रंथों में क्षमलता है। कुछ ब्राह्मणों को जो वेदों में क्षनष्णात थे, वेदों की क्षशिा देते थे तथा बडे-बडे र्ज्ञ किते थे, पाक्षल-ग्रंथों में 'ब्राह्मणक्षनस्साल' कहा गर्ा है। वे अश्वमेध, वाजपेर् इत्र्ादद र्ज्ञ किते थे। ऐसे ब्राह्मणों को िाज्र् से कि-मुक्त भूक्षम दान में क्षमलती थी। अथयशास्त्र में ऐसी भूक्षम को 'ब्रह्मदेर्' कहा गर्ा है औि इन र्ज्ञों की इसक्षलए ननंदा की गई है दक इनमें गौ औि बैल का वध होता था, जो कृक्षष की दृक्षष्ट से उपर्ोगी थे। दकन्तु कमयकाण्ड प्रधान वैददक धमय अक्षभजात ब्राह्मण तथा िक्षत्रर्ों तक ही सीक्षमत था।
References
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