जीवन का सत्य

Authors

  • रानी

Keywords:

जीवन, सत्य

Abstract

 हमसे यह प्रश्न पूछा जाता है, जीवन का सत्य क्या है ? अथवा जीवन का उद्देश्य क्या है ? अथवा हम जन्म क्यों लेते हैं ? जीवन के उद्देश्य के सन्दर्भ में अधिकतर हमारी अपनी योजना होती है, किन्तु आध्यात्मिक दृष्टि से सामान्यतः जन्म के दो कारण है। ये दो कारण हमारे जीवन के उद्देश्य को मूलरूप से परिभाषित करते हैं। ये दो कारण है: विभिन्न लोगों के साथ अपना लेन-देन पूरा करने के (चुकाने के) लिए। आध्यात्मिक प्रगति कर ईश्वर से एकरूप होने का अति ध्येय साध्य करने के लिए, जिससे कि जन्म-मृत्यु के चक्र से मुक्ति मिले।

References

दादा भाई नौरौजी और रमेशचन्द्र दत्त की पुस्तकें ब्रिटिश राज का आर्थिक विश्लेषण है, हिन्दी स्वराज के दर्शन से संबद्ध कुछ भी उनमें नहीं है। शेष सभी अठारह पुस्तकें दार्शनिक रचनाएं हैं जो सभी पश्चिमी चिंतकों की है।

गुजरात राजनीतिक परिषद् में भाषण, गोधरा, 3 नवम्बर, 1917

. उदाहरण के लिए देखें, ‘गुजरात राजनीतिक परिषद् में भाषण , 3 नवम्बर 1917

चर्खे को ‘भविष्य के भारत की सामाजिक व्यवस्था’ का आधार बनाने की बात गाँधी 1940 में भी करते थे। रवीन्द्रनाथ टैगोर द्वारा की गई गुरु-गंभीर आलोचनाओं (देखें, इनका ‘‘स्वराज साधना’’ शीर्षक लेख) के बीस वर्ष बाद भी, बिना उसका कहीं उत्तर दिए।

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Published

2018-03-30

How to Cite

रानी य. (2018). जीवन का सत्य. Innovative Research Thoughts, 4(4), 227–231. Retrieved from https://irt.shodhsagar.com/index.php/j/article/view/826