ऋग्वैदिक एवं उत्तरवैदिक काल में समाज में स्त्रियों की स्थिति: एक तुलनात्मक अध्ययन

Authors

  • ममता शोधार्थी, इतिहास विभाग, बाबा मस्तनाथ विश्वविद्यालय, अस्थल बोहर, रोहतक
  • डाॅ॰ अंजना राव एसोसिएट प्रोफेसर, इतिहास विभाग, बाबा मस्तनाथ विश्वविद्यालय, अस्थल बोहर, रोहतक

Keywords:

ऋग्वैदिक एवं उत्तरवैदिक काल में समाज

Abstract

यन्त्र नार्यस्तु पूज्यंते, रमन्ते तत्र देवता अर्थात् जहाँ नारियों की पूजा होती है वहाँ देवता निवास करते है। ऋग्वैदिक सभ्यता से ही भारतीय संस्कृति में स्त्री को उच्चतम स्थान दिया गया है। ऋग्वैदिक सभ्यता से प्राप्त अवशेषों के अवलोकन यह पता चलता है कि उस समय के परिवार मातृसत्तात्मक थे और मातृ देवी की पूजा किी जाती थी। माता को जननी के रूप में पूजा जाता था। इसके बाद उत्तर वैदिक काल से ही नारी के राजनीतिक, सामाजिक, धार्मिक अधिकारों में कमी होनी शुरू हो गई। आर्थिक अधिकारों में तो स्त्रियों पहले से ही पीछे थी, परन्तु इस समय के बाद उसमें और ज्यादा गिरावट आई। ऋग्वैदिक व उत्तर वैदिक सभ्यता की पूजनीय स्त्री अब सब तरफ से कमजोर हो चुकी थी। इस काल में शुरू हुई पुरूष और स्त्रियों के जीवन स्तर की गिरावट अगली कई शताब्दियों तक निरंतर नीचे जाती रही।

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Published

2024-03-30

How to Cite

ममता, & डाॅ॰ अंजना राव. (2024). ऋग्वैदिक एवं उत्तरवैदिक काल में समाज में स्त्रियों की स्थिति: एक तुलनात्मक अध्ययन. Innovative Research Thoughts, 10(1), 138–141. Retrieved from https://irt.shodhsagar.com/index.php/j/article/view/785