कैलाशचन्द्र शर्मा के साहित्य, संगीत एवं रंगयात्रा में लोकजीवन एवं लोक समस्या
Keywords:
साहित्य, संगीत एवं नाट्य विमर्ष, त्रिवेणी कला संगम, प्रदर्शनात्मक, व्याख्यान, तुक्के का बादषाहAbstract
कैलाशचन्द्र शर्मा जी ने अपने सम्पूर्ण साहित्य में लोकजीवन एवं लोकतत्त्वों को समाहित किया है जिसे जन-जन तक पहुँचाने के उद्येष्य से उन्होंने अपनी धर्मपत्नी श्रीमती रेनू रानी शर्मा जी के सहयोग से जब त्रिवेणी कला संगम,जयपुर की स्थापना की तो उसमें उन्हें उनके जीवन का यह परिवेश और रेनू जी को केन्द्रीय हिन्दी संस्थान आगरा में हिन्दी एवं भाषा विज्ञान के प्रोफेसर के रूप में कार्यरत अपने पिता ईश्वर सिंह जी से साहित्य के रूप में मिले इस प्रकार के संस्कार ही प्रमुख आधार बने जिसके परिणामस्वरूप वर्ष 1995 की गणेश चतुर्थी के दिन अनौपचारिक रूप से त्रिवेणी कला संगम,जयपुर की स्थापना हुई।
संस्था की गतिविधियों में कैलाषचन्द्र शर्मा जी द्वारा सृजित साहित्य, संगीत एवं नाटकों को पर्याप्त मात्रा में समावेष करके नई प्रतिभाओं को आगे बढने का अवसर प्रदान किया गया है। विभिन्न व्यक्तियों एवं स्वैच्छिक तथा सरकारी संस्थाओं का सक्रिय योगदान रहा है जिनमें परम्परा नाट्य समिति, वीणापाणि कला मन्दिर, जयपुर, गंगानगर कलामंच, श्रीगंगानगर, शास्त्री कला मण्डल जोधपुर, अर्चना नृत्यालय मुम्बई एवं न्यूजर्सी अमेरिका, अखिल भारतीय गांधर्व महाविद्यालय मंडल मुम्बई, इन्दिरा कला संगीत विश्वविद्यालय खैरागढ़, रवीन्द्र मंच समिति जयपुर, राजस्थान संगीत नाटक अकादमी जोधपुर आदि का सक्रिय योगदान रहा है जिसका विवेचन-विश्लेषण इस शोध पत्र में प्रस्तुत किया जाएगा।
प्रारम्भ में संस्था की गतिविधियाँ, संगीत, नृत्य एवं नाटकों तक ही सीमित थी परन्तु जब संस्था द्वारा अपने प्रशिक्षण हेतु अच्छे बाल-नाटकों की कमी महसूस की गई तो कैलाश जी ने स्वयं बच्चों के लिये नाटक लिखना प्रारम्भ किया और तब उन्होंने संस्था के शिविरों में अपने ही लिखे नाटक तुक्के का बादशाह, छोटा बेगारी, पेड़ हमारे मित्र, मेरी लाडो पढ़ेगी, लड़ी मैड़ की, मोती मैड़ के, आज का गुरुकुल, वीर शिरोमणि पृथ्वीराज चैहान तथा अपनी कविता विशाल भारत, बंधन आदि के प्रस्तुतीकरण द्वारा लोक-साहित्य एवं लोक-कला के उस स्वरूप को पुनःजागृत करने का प्रयास किया जो वर्तमान समय की आँधी की धूलभरी परत के नीचे दबकर बाहर आने को तड़पता रहा।
आज त्रिवेणी कला संगम,जयपुर का कार्यफलक इतना विस्तृत हो गया है कि संस्था के समक्ष देश-विदेश की कोई सीमा न रही और कैलाश जी ने 14 अप्रैल 2018 को दुबई में संस्था की ओर से एक अल्पकालिक शिविर का आयोजन करके विदेषों के विद्यार्थियों को अपने ढूंढाड़ी गीतों का प्रशिक्षण देकर अपने एक प्रदर्शनात्मक व्याख्यान में उन्हें प्रस्तुति का अवसर देते हुए दुबई के निवासियों को भारत के ग्राम्यजीवन, एवं लोक-जीवन से साक्षात्कार कराया। संस्था का यह कार्य निश्चय ही सराहनीय एवं एक साहसिक प्रयास है क्योंकि यह विद्यार्थियों, साहित्य के अध्येताओं और कला जगत् से जुडे हर व्यक्ति के लिए उपयोगी रहेगा।
References
आधुनिक हिन्दी साहित्य की मूल्य चेतना, पृष्ठ संख्या 14
कर्मपथ संपादक रेणुका इसरानी, पृष्ठ संख्या 21-22
कर्मपथ संपादक रेणुका इसरानी, पृष्ठ संख्या 27-28 4 कैलाषचन्द्र शर्मा का साहित्य सृजन, पृष्ठ संख्या 59 5 कैलाषचन्द्रशर्मा जी की कहानियों में मानवीय मूल्य एवं संवेदना, रीना कुमारी द्धारा सम्पादित “ कैलाषचन्द्र्र शर्मा का बहुआयामी सृजन, पृष्ठ संख्या 67”
कर्मपथ संपादक रेणुका इसरानी, पृष्ठ संख्या 21-22
कर्मपथ संपादक रेणुका इसरानी, पृष्ठ संख्या 192
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