साहित्य और मूल्य का अंतर्सम्बन्ध: एक अनुशीलन
Keywords:
निवारण, मूल्य-निरपेक्ष, मूल्यपरकता, लोक-कल्याणAbstract
किसी भी साहित्य की सार्थकता उसकी मूल्यपरकता में निहित है। साहित्य और मूल्य का गहरा संबंध है। साहित्य का मूल्य के बिना कोई महत्त्व नहीं है। साहित्य समाज के बाह्य और आंतरिक दोनों घटकों को उद्घाटित करता है। इसलिए साहित्य को समाज का दर्पण कहा जाता है। मूलतः साहित्य का उद्देश्य लोक-कल्याण से सम्बन्धित विचारों को प्रकट करना और जन-जन तक पहुँचाना है। मूल्य की स्थापना और समय-समय पर इनका परिष्कार करना भी साहित्य का धर्म है। किसी भी साहित्य की सार्थकता उसकी मूल्यपरकता में निहित है। इसलिए साहित्य-सर्जक के लिए मूल्य-निरपेक्ष कृति की सृष्टि करना निरर्थक है। इससे उसकी रचना निष्प्रयोजन हो जाती है।
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