विवाह संस्था पर सामाजिक अधिनियमों का प्रभाव (ग्वालियर महानगर के संदर्भ में एक अध्ययन)
Keywords:
समाज, विवाह, संस्था, अधिनियमAbstract
विवाह को जन्म-जन्मांतर का बंधन माना जाता है तथा विवाह विच्छेद करना सामाजिक दृष्टि से हेय माना जाता है, परंतु कुछ एक दशको में हुये परिवर्तनों के कारण निश्चयात्मक तौर से अब यह नहीं कहा जा सकता कि आज की युवा पीढ़ी जन्म-जन्मांतर के बंधन या धार्मिक कर्तव्य और संस्कार तथा सामाजिक दायित्व बोध से ही विवाह करता है। हिंदुओ में भी विवाह का स्वरूप अब समझौते का बनता जा रहा है। तलाक को कानूनी मान्यता मिल चुकी है लेकिन, इसका तार्पय यह नहीं है कि प्रत्येक हिंदु के लिये अब विवाह का स्वरूप पश्चिम की तरह, समझौते का हो गया है और इसे आसानी से तोड़ा जा सकता है, वर्तमान समय में भी हिंदुओं के लिये कानूनी विवाह, विवाह के लिये पंजीकरण, अंतर्जातीय और अंतधार्मिक विवाह लोकप्रिय नहीं है। कानूनी प्रतिबंध के होते हुये बाल विवाह का प्रचलन है तथा कानूनी संरक्षण के होते हुये भी विधवा विवाह नहीं हो पा रहे। दहेज लेना व देना दोनों ही अपराध है इसके बावजूद भी दहेज का प्रचलन न केवल बना हुआ है बल्कि यह बहुसंख्यक हिंदुओं के प्रभाव के कारण अन्य समुदायों में भी प्रचलित हो गया है जहाँ इसका प्रचलन पहले नहीं था।
References
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