गोविन्द विश्र जी के पुरस्कार तथा सम्मान: एक विवेचना
Keywords:
प्रकियाएँ,, िनुष्य, बुवददिानAbstract
परिवपता परिात्िा ने सृवि की रचना करते सिय िनुष्य को बुवददिान प्राणी केरूप िें सृवजत ककया िै। िनुष्य अन्य प्रावणयों से सिझदार, जागरूक, वजज्ञासु एिं श्रेष्ठ
िै। िानि प्रकृ वत का सबसे अनुपि उपिार िै, िनुष्य िें सोचने, सिइने और ग्रिण करने की सिोति शवि वनवित िै। यि शवि उसे उसी परिवपता ने प्रदान की िै। उसी शवि के बल पर िि अन्य प्रावणयों पर अपना प्रभुत्ि स्थावपत ककये िै। इसी आधार पर उसनेससंि एिं िाथी जैसे खूंखार तथा विशाल बल िाले प्रावणयों को भी कै द कर रखा िै। सभी प्रावणयों िें आिार, वनद्रा, भय और िैथुन (सन्तानोत्पवत) की प्रकियाएँ सिान रूप से दृविगोचर िोती िै, ककन्तु सावित्य के क्षेत्र िें संगीत और
कला से वििीन िनुष्य पुच्छ-विषाण रवित िाना गया िै।
References
गोविन्द विश्र: सृजन के आयाि, सं. चन्द्रकान्त बांकदिडेकर, पृ.सं. 11
गोविन्द विश्र और उनकी सावित्य साथना, ड . प्रविला वत्रपाठी, पृ.सं. 22
लेखक की जिीन (जब जैसे जो िोता चला), पृ.सं. 89
गोविन्द विश्र और उनकी सावित्य साधना, ड . प्रविला वत्रपाठी, पृ.सं. 23
यात्रा सावित्यकार गोविन्द विश्र, ड . प्रकाश िोकाशी, पृ.सं. 17, 18
गोविन्द विश्र और उनकी सावित्य साधना, ड . प्रविला वत्रपाठी, पृ.सं. 33
ड . प्रीवत प्रभा गोयल - भारतीय संस्कृ वत ,राजस्थानी ग्रंथागार, जोधपुर, प्रथि संस्करण
,पृ. सं. 10
गोविन्द विश्र - सावन्नदय-सावित्यकार,िाणी प्रकाशन,नई कदल्ली, प्रथि संस्करण
,पृ. सं. 69
Downloads
Published
How to Cite
Issue
Section
License
This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial 4.0 International License.