काम का अधिकार एवम सामाधिक आर्थिक न्याय: एक विवेचना
Keywords:
सामाधिक आर्थिक, अंतरािष्ट्रीय कानूनAbstract
अंतरािष्ट्रीय कानून के तहत एक राज्य को "एक स्वतंत्र रािनीधतक इकाई, पररभाधित क्षेत्र पर कब्िा करने के रूप में पररभाधित ककया गया है, धिसमें से सदस्य बाहरी बल का प्रधतरोि करने और आंतररक आदेश के संरक्षण के उद्देश्य से एकिुट होते हैं।" हम इस पररभािा से अनुमान लगा सकते हैं कक यह केवल झूठ बोल रहा है राज्य की पुधलस कायि पर िोर देते हुए हालांकक आिुधनक युग में कोई भी राज्य ऐसे सीधमत कायों के साथ नहीं रहता है। यह एक सामाधिक कल्याणकारी राज्य बन िाता है और कोई भी राज्य कल्याणकारी राज्य नहीं बन सकता है िब तक कक यह अपने धवियों के आर्थिक धहतों की रक्षा न करे। यहां तक कक भारतीय धनवािचन क्षेत्र आर्थिक न्याय के माध्यम से सामाधिक कल्याणकारी राज्य बना रहा है। भारतीय धनवािचन क्षेत्र के प्रस्ताव में यह शब्द शाधमल है धिसमें कहा गया है कक राज्य अपने सभी धवियों को सामाधिक, आर्थिक और रािनीधतक न्याय के धलए सुरधक्षत करने का दाधयत्व है, हालांकक इन शब्दों का केवल धशलालेख लोगों के धहतों के धलए पयािप्त नहीं होगा। यह शोि पत्र मुख्य रूप से आर्थिक न्याय से संबंधित प्राविानों पर केंकित है और भारतीय राष्ट्रों द्वारा अपने धवियों को आर्थिक न्याय को बढावा देने के धलए सुधनधित धवधभन्न अधिकारों की व्याख्या करना चाहता है। भारत का संधविान भारत के लोगों के धलए धवधभन्न मौधलक अधिकार प्रदान करता है और राज्य नीधत के धनदेश धसद्ांत के तहत राज्य के धहस्से पर कुछ कतिव्य भी धनिािररत करता है धिसके माध्यम से यह अपने लोगों के धलए आर्थिक न्याय सुधनधित करता है।
References
गाबा ओमप्रकाश : समकालीन रािनीती धसद्ांत , पृष्ठ – 231
ससंह , डॉ महेंदर : सामाधिक – आर्थिक न्याय की रुपरेखा
ससंह , वीरेंदर : सामाधिक न्याय
नारायण इकबाल : रािनीती शाश्त्र के मूल धसद्ांत
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