हिन्दी कहानियों मे नारी की परिवारिक संघर्ष चेतना
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घर परिवार, उद्घाटितAbstract
घर परिवार वह धरातल है, जो व्यक्ति को समाज से जोड़ता है। घर-परिवार में आपसी
सौहर्द्र-प्रेम के सूत्र में बंधकर पति-पत्नी एक अच्छे समाज की संरचना की ओर अग्रसर होते है परिवार की सार्वभौमिकता से कोई अपरिचित नहीं है। नारी और घर परिवार अन्तः-सम्बन्ध को निम्नलिखित चार बिन्दअुो ं का आधार बनाकर उद्घाटित किया जाएगा-
References
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डॉ. देवेश ठाकुर, कथा वर्ष 1947 उद्धृत-शीला राजवार की पुस्तक, स्वतन्योत्तर हिन्दी कथा साहित्य में नारी के बदलते संदर्भ पृ 134
युलि आन ब्रोमलेय, रोमान पादोल्ली पृ. 250 अनुवादक योगेन्द्र नागपाल
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शील राजवार, स्वातन्न्न्योत्तर, हिन्दी कथा साहित्य में नारी के बदलते संदर्भ, पृ. 136
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