प्राचीन भारत मे नारी शिक्षा: एक अध्ययन
Keywords:
सौभाग्यशालिनी, नारी शिक्षाAbstract
भारतीय संस्कृति मे स्त्रियों को सदैव से ही अत्यन्त सम्मान जनक एवं प्रतिष्ठित स्थान प्राप्त था। जीवन के प्रत्येक क्षेत्र मे उन्हंें पुरुषों के समान अधिकार प्राप्त थे। ऋग्वेद मे तो स्त्रियों को सुभगे कहा गया है अर्थात् ‘‘सौभाग्यशालिनी‘‘। यह महत्त्वपूर्ण है कि विश्व की अनेकों प्राचीन संस्कृतियों मे स्त्रियों की स्थिति पर दृष्टिपात करने से प्रायः निराशा ही हाथ लगती है। जबकि इस संदर्भ मे हम जब भी भारतीय संस्कृति एवं सभ्यता मे जितने प्राचीन स्तर पर जाते हैं तो स्त्रियों की सामाजिक दशा को उतना ही श्रेष्ठ पाते हैं। यहाँ तो गृह का अस्तित्व ही स्त्री के अस्तित्व मे निहित माना जाता था। भारतीय संस्कृति मे स्त्रियों को अपना मनोकूल आत्मविकास और उत्थान करने का पूरा अधिकार प्राप्त था। उन्हें विवाह, शिक्षा आदि समस्त क्षेत्रों मे पुरुषसम अधिकार प्राप्त थे। कन्या, भगिनी, भार्या, माता प्रत्येक रुप मे वे समाज के सम्मान एवं श्रद्धा का केन्द्र होती थी। धर्मशास्त्रों मे नारी सर्वशक्ति सम्पन्न मानी गई है तथा विद्या, शील, ममता, यश एवं सम्पत्ति की प्रतीक समझी गयी है।
References
ऋग्वेद, 3/53/4, गृहणी गृहमुच्यते।
वही, 1/126/7, 1/179, 5/28,
वही, 8/31, यादम्पति सुमनसा आ च धावतः। देवा सो नित्यथा शिरा।
वही, 3/5/65,
यजुर्वेद, 8/1, उपयाम गृहीतोस्यादित्येभ्यस्त्वा।
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