बालकों में भाषिक विकास

Authors

  • promila

Keywords:

बाल्यावस्था, अवस्था

Abstract

बाल्यावस्था जीवन की आधारभूत अवस्था है।’ जीवन के शुरू के वर्षों में अभिवृत्तियों, आदतों और व्यवहार के प्रकार पक्के हो जाते हैं। बालरूप की शक्ति यही है जिसका अनुभव हम काव्य, संगीत, चित्रा एवं मूर्ति में करते हैं। भारतीय दृष्टि बाल-सौंदर्य की अनुभूति में रूप की पूर्णता उसकी शक्ति का स्रोत एवं स्वरूप है वह रूप, जिसकी पूर्णता में प्रत्येक अंग अपने प्रभाव के साथ, संगीत में संवादी स्वर की भांति, अंगी में समरस हो जाता है संतुलन, सामंजस्य आदि रूप संपदा इतनी पूर्ण कि कुछ भी चाहने को शेष नहीं रूप एवं रूपित, बाह्य और आभ्यंतर, शरीर एवं आत्मा का ऐसा आश्चर्यजनक अभेद जिसमें सारे के सारे भेद गल गए हैं, समय की सीमा समाप्त और जीवन के अंतराल में महाकाल के लय की अनुभूति बाल-सौंदर्य द्वारा उन्मीलित लोक में सत्य प्रमाणित होती है। अंतर्मन के ज्योतिर्लोक में अभूतपूर्व ज्योतियों का प्रकाश, अनुभूत आनंदों की अनुभूति, अदृष्ट दिशाओं का उन्मीलन, सद्यः प्रसूत रस-गंध-स्पर्श रूप-ध्वनि का प्रवाह और अंत में, अपने ही भीतर एक नूतन, आनंद-विभोर, प्रभाओं से पोषित, मानव के आविर्भाव की जाग्रत अनुभूति बाल-रूप में होती है, चाहे वह सूर का बाल रूप कृष्ण, तुलसी का बाल रूप राम-लक्ष्मण का प्रत्येक घर परिवार में जन्मा सामान्य बाल-रूपा।

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Published

2017-12-31

How to Cite

promila. (2017). बालकों में भाषिक विकास. Innovative Research Thoughts, 3(11), 63–69. Retrieved from https://irt.shodhsagar.com/index.php/j/article/view/328