लोकप्रिय हिंदी सिनेमा में दलित चित्रण
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व्यवसाय, कलाकार, कहानीAbstract
हिंदी फिल्मों के पितामह दादा साहब फाल्के ने जब पहली फिल्म बनाई थी तब उन्होंने पौराणिक कथानकों को उठाया था। आरंभिक फिल्में कही न कही पारसी के लोकप्रिय थियेटर की ही जगह ले रहे थे। पारसी थियेटर के नाटक अधिक रूप में उस मेलाड्रामा का ही एक मंचीय रूप था जिसे हम वर्तमान के लोकप्रिय सिनेमा से जोडते है। इसके साथ यह भी सही है कि इन मनोंरजन फिल्मों के निर्माण में कुछ उद्देश्य को ध्यान में रखा जाने लगा था हमें यही पूरे इतिहास को जानने की आवश्यकता नहीं है लेकिन आरंभ से वर्तमान तक इन्ही मेलोड्रामाई फिल्म विधा में लगातार ऐसी फिल्में बनती रही जिनमें नए प्रयोग भी होते रहे और जिनमें किसी न किसी सामाजिक समस्या को अधिक गंभीरता से उठाया जाता रहा। दलित वर्ग का अर्थ अस्पृश्य ही नहीं अपितु सामाजिक रूप से अविकसित, पीड़ित, शोषित, निम्न, जातियों के वर्गों की गणना भी दलित में होती है। प्रस्तुत पेपर में शोधार्थी ने लोकप्रिय हिंदी सिनेमा में दलित चित्रण को विभिन्न रूपों में दिखाया गया है।
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