पेयजल संरक्षण: चिंता का प्रमुख विषय
Keywords:
जल सरंक्षण, जल चक्र वैश्विक तापनAbstract
पृथ्वी के कुल क्षेत्रफल के लगभग 70 प्रतिशत भाग पर जल है किंतु इसमें पीने योग्य मीठा जल केवल 3 प्रतिशत है, शेष भाग खारा जल है। इसमें से भी मात्र एक प्रतिशत मीठे जल का ही वास्तव में हम उपयोग कर पाते हैं। सामान्यतः मीठे जल का 68 प्रतिशत बर्फीली चोटी एवं ग्लेशियरों के रुप में 30 प्रतिशत भूमिगत जल के रुप , 1 प्रतिशत नदियों में, 1 प्रतिशत वनस्पति एवं वाष्प के रुप में निहित है। इस प्रकार सम्पूर्ण परिदृश्य में सापेक्षिक रुप में मीठे जल के प्राकृतिक जल स्त्रोतों की गंभीर कमी के बावजूद आर्थिक विकास, बढ़ता औद्योगीकरण और जसंख्या विस्फोट से जल .प्रदूषण तथा बढ़ती जल की मांग एवं खपत ने जलचक्र को बिगाड़ दिया है। जिसके कारण आज विश्व के कई भागों में पेयजल की कमी की गंभीर समस्या उत्पन हो गई है। जल जो की मानव जीवन की मूलभूत आवश्यकता है। उसकी इस प्रकार से कमी मानव जीवन के लिए खतरे का सूचक है। जल की कमी मानव के लिए ही नही अपितु सम्पूर्ण प्राणी जगत के लिए खतरा उत्पन कर सकती है। इस समस्या को नज़रअंदाज किए बिना तत्काल इसके समाधान की आवश्यकता है। अन्यथा निकट भविष्य में इसके अत्यंत गंभीर परिणाम हो सकते है।
References
दैनिक जागरण, न्यूज पेपर, 28.05.2018 (पृष्ठ संख्या 09) ‘‘जलः है अर्थव्यवस्था का संकट’’
विश्व बैंक रिपोर्ट, ’’भ्पही - क्तलरू ब्सपउंजम बींदहमए ॅंजमत ंदक म्बवदवउल’’
स्वच्छता एवं पेयजल मंत्रालय (इंडिया वाटर पोर्टल)
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