नुक्कड़ नाटकों में सामाजिक समस्याएँ

Authors

  • अनीता प्राथममक मिक्षिका, हरििन बस्ती, जीन्द ( हरियाणा)

Keywords:

सामाजिक समस्याएँ, नाटक

Abstract

नुक्कड़ नाटक हमारे देश के लिए कोई नई चीज नह ीं है। देश के प्रत्येक अींचि में नाटकों का प्रदशशन ककसी न ककसी रूप में खुिे आकाश तिे मैदानों और चौपािों में होता रहा है। इन नाटकों के माध्यम से न केवि पौराणिक कथाएँ एवीं सामाजजक कायशकिाप अपपतु जन समस्याओीं एवीं िोकोपयोगी सींदेशों को प्रसाररत करने के कायश भी होते रहे हैं। नुक्कड़ नाटक इन पारींपररक नाटकों का ह पररवर्तशत रूप है। "नुक्कड़ नाटक: परींपरा और प्रयोग" शीर्शक के अींतगशप 'डॉ० सनत कुमार' लिखते हैं-- "मध्य काि में उत्तर भारत में रामि िा और रासि िा, नाच और नौटींकी, साींग आदद िोक किा के पवलभन्न रूपों ने जनमानस में अपना र्नजचचत स्थान बनाया है। इन िोक नाट्यों को खेिने वािे सामान्य जनता के ह किाकार होते आए हैं। नुक्कड़ नाटक की प्रेरिा तथा परींपरा इन्ह ीं नाट्य रूपों से सींबींधित है।"1 आज हमारे यहाँ प्रचलित नुक्कड़ नाटक की जड़ें कह ीं बहुत गहरे मेंअपनी समृद्ि िोक नाट्य परींपरा से जुड़ी हैं। चारों ओर बैठे दशशकों से सींवाद और उनकी साींझेदार , सज्जापवह न खुिा रींगस्थि, सामाजजक राजनैर्तक कमैंट जैसी नुक्कड़ नाटक की ककतनी ह पवशेर्ताएँ हैं जो प्रत्यक्षतः हमारे िोक नाटकों से सींबद्ि या प्रभापवत हैं। िोकनाटक से रूपगत साम्य रखते हुए भी नुक्कड़ नाटक अपनी स्वतींत्र पहचान के साथ अवतररत हुए हैं।

References

डॉ० सनत कुमार व्यास , नुक्कड़ नाटक; परींपरा और प्रयोग, अींक 4, पृष्ठ 153

दहींद रींगकमश, दशा और ददशा, जयदेव तनेजा, पृष्ठ 143

दहींद नाटक और रींगमींच, ब्रेख्त का प्रभाव, डॉ० सुरेश वलशष्ठ, पृष्ठ 52

उत्तर गाथा, अप्रैि-जून-1983, अरुि शमाश, पृष्ठ 71

सिदर हाशमी, व्यजक्तत्व कृर्तत्व, पृष्ठ 40

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Published

2017-12-30

How to Cite

अनीता. (2017). नुक्कड़ नाटकों में सामाजिक समस्याएँ. Innovative Research Thoughts, 3(7), 29–32. Retrieved from https://irt.shodhsagar.com/index.php/j/article/view/156