प्रभा खेतान के साहित्य में ‘स्त्रीत्ववाद’ में चेतना का स्वरूप
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https://doi.org/10.36676/irt.v10.i3.1492Keywords:
स्त्रीत्ववादAbstract
स्त्री का व्यक्तित्व बदलती हुई संवेदनाआंे के अनगिनत आयामांे मंे विकसित हुआ है। सामाजिक, सांस्कृतिक, राजनीतिक स्तर पर हमारे देश के मानवाधिकारांे मंे कुछ बदलाव भी संभव हुए हैं। सामाजिक सम्बन्धांे मंे परिवर्तन को भी सहसा ही लक्षित किया जा सकता है। वर्तमान मंे स्त्री सजग हुई है, आत्मनिर्भर हुई है और अपने अधिकारांे के प्रति संचेतना के निर्माण के निरन्तर प्रयासों मंे लीन है। इस संदर्भ मंे वर्षों पूर्व महादेवी वर्मा की ‘श्रृंखला की कड़ियाॅं’ मंे वर्णित एक प्रसंग मंे वे कहती हैं, ‘स्त्री स्वतंत्रता का आकार स्त्रियोचित गुणांे के आधार पर होना चाहिए।
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