बाबा नागाजुर्न के कथासाहित्य में स्त्री-विमर्श एक अध्ययन

Authors

  • डॉ. राम अधार सिंह यादव एसोसिएट प्रोफेसर हिन्दी-विभाग, एस0 एम0 काॅलेज चन्दौसी (सम्भल)

Keywords:

हिंदी साहित्य, कथासाहित्य , बाबा नागाजुर्न , स्त्री, स्त्री-विमर्श

Abstract

मैथिली और हिन्दी के यशस्वी बाबा नागार्जुन आधुनिक युग के नवचेतना के कथाकार है। उन्होंने एक ओर तो वर्ग संघर्ष से संत्रस्त मानवों के प्रति गहन संवेदना व्यक्त करते हुए इसके लिए उत्तरदायी व्यवस्था के विरूद्ध तीव्र आक्रोश प्रकट किया है तो दूसरी ओर स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद बहुसंख्यक जनता को अभावों कष्टों एवं पीड़ाओं मंे लीन देखकर स्वदेशी शासको के अनुचित कार्यो के प्रति प्रखर एवं उत्कृष्ट व्यंगय वाणों की बौछार की है। समाज की यंत्रणाओ और पीड़ाओं से नर-नारी के उत्थान के लिए संघर्षरत सर्वहारा वर्ग का स्तवन किया है।
सृष्टि के आरम्भ से ही नारी-जीवन की धारा पुरूष के आकर्षण और उपेक्षा के दो पाटो के बीच प्रवाहमान रही हैं। उसने मानव-जीवन के सभी क्षेत्रो को अपनी दया, करूणा, ममता, माया तथा अगाध विश्वास से अभिषिक्त है। नारी प्रेरणा-शक्ति बनी है पुरूष जीवन के लिए। नारी समस्त मानवीय सौन्दर्य एवं चेतना की सर्वोत्तम अभिव्यक्ति है साथ ही सृष्टि का मूल भी। आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी के अनुसार “पुरूष स्वभावतः निःसंग व तटस्थ होता है नारी ही उसमें आसक्ति उत्पन्न कर उसे नव-निर्माता के प्रति उन्मुख करती है। पुरूष अपनी पुरूष प्रकृति के कारण द्वन्द्व रहित हो सकता है लेकिन नारी अतिशय भावुकता के कारण सदैव द्वन्द्वोंमुखी रहती है। इसलिए पुरूषमुक्त है और नारीबद्ध।

References

- वाणभटट् की आत्मकथा आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी राजकमल प्रकाशन दिल्ली 1973 पृष्ठ 145

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- नागार्जुन-‘वरूण के बेटे’ वाणी प्रकाशन नई दिल्ली 1984 पृष्ठ 124

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- नागार्जुन हीरक जयन्ती अभिनन्दन आत्माराम एण्ड सन्स दिल्ली 1962 पृष्ठ 92

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- नागार्जुन बलचनवा वाणी प्रकाशन नई दिल्ली 1989 पृष्ठ 155

-नागार्जुन नमी पौध राजकमल प्रकाशन दिल्ली 1989 पृष्ठ 07

-नागार्जुन वरूण के बेटे वाणी प्रकाशन नई दिल्ली 1984 पृष्ठ 111

-नागार्जुन उग्रतारा राजकमल प्रकाशन दिल्ली 1987 पृष्ठ 103

-नागार्जुन रचिनाथ की चाची, यात्री प्रकाशन पटना 1977 पृष्ठ 98

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Published

2018-09-30

How to Cite

डॉ. राम अधार सिंह यादव. (2018). बाबा नागाजुर्न के कथासाहित्य में स्त्री-विमर्श एक अध्ययन. Innovative Research Thoughts, 4(6), 62–66. Retrieved from https://irt.shodhsagar.com/index.php/j/article/view/1423