हिमाचल प्रदेश में हरिजन सेवक संघ के रचनात्मक कार्य
Keywords:
हिमाचल प्रदेश, सेवक संघAbstract
अखिल भारतीय हरिजन सेवक संघ की स्थापना सन् 1932 में, महात्मा गाँधी के उस इतिहास-प्रसिद्ध उपवास के तुरन्त बाद हुई थी, जो उन्होंने तत्कालीन ब्रिटिश प्रधानमन्त्री रैम्ज़े मैक्डोनाल्ड द्वारा दिए गए साम्प्रदायिक निर्णय के उस अंश के विरोध में पूना की यरवडा जेल के अन्दर किया था, जिसमें तथाकथित अछूतों के लिए पृथक निर्वाचक मण्डलों के निर्माण के प्रावधान को स्वीकार किया गया था। दिनांक 20 सितम्बर, 1932 को प्रारम्भ किये गए अपने इस आमरण अनशन के माध्यम से वे दिनांक 24 सितम्बर, 1932 को सवर्ण हिन्दू व हरिजन नेताओं के बीच एक समझौता (यरवदा पैक्ट अथवा पूना समझौता) कराने में सफल रहे, जिसके अनुसार मैक्डोनल्ड के प्रस्ताव में संशोधन किया गया और केन्द्रीय व प्रान्तीय विधानसभाओं में हिन्दुओं के लिए संयुक्त निर्वाचक मण्डलों का अस्तित्व कायम रहा, जिनमें दलितों के लिए सीटों के आरक्षण का प्रावधान किया गया। उल्लेखनीय है कि यही व्यवस्था मूलतः 1947 के बाद भी बनी रही। यरवदा पैक्ट अथवा पूना समझौते के अगले ही दिन यानी दिनांक 25 सितम्बर, 1932 को सारे भारत के हिन्दुओं के प्रतिनिधियों की एक परिषद का आयोजन बम्बई में किया गया, जिसकी अध्यक्षता पण्डित मदन मोहन मालवीय ने की। इस परिषद में सवर्ण हिन्दू कहे जाने वाले सब लोगों की ओर से पास किये गए प्रस्तावों में से एक महत्वपूर्ण प्रस्ताव था कि- ”यह परिषद यह निश्चय करती है कि आज से हिन्दुओं में कोई व्यक्ति अपने जन्म के कारण अछूत नहीं माना जाएगा, और जो लोग अब तक अछूत माने जाते हैं, उन्हें सार्वजनिक कुओं, सार्वजनिक सड़कों और दूसरी सब सार्वजनिक संस्थाओं के उपयोग के बारे में वे सब अधिकार होंगे, जो कि दूसरे हिन्दुओं को होते हैं।” इसके पश्चात्, सारे राष्ट्र के हिन्दू नेताओं ने दिनांक 30 सितम्बर, 1932 ई० को पण्डित मदन मोहन मालवीय की अध्यक्षता में बम्बई में ही एक सार्वजनिक सभा की जिसमें निम्नलिखित प्रस्ताव पास किया गय
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