नागार्जुन के उपन्यासों में दलित विमर्श: एक विस्तृत अध्ययन

Authors

  • Pinki

Keywords:

उपन्यास, शून्यता और रचनाए

Abstract

नागार्जुन एक महान भारतीय दार्शनिक, बौद्ध धर्म विद्वान और साहित्यकार थे। वे मध्य एशिया से आए हुए माध्यमिक दार्शनिकों में से एक थे। उन्होंने बौद्ध धर्म के सिद्धांतों के उद्घाटन किए थे और उन्हें अपनी सोच के माध्यम से समझाने का प्रयास किया था। नागार्जुन के विचारधारा का मूलभूत तत्व शून्यता है, जो बौद्ध धर्म की मूल विधि है। उन्होंने शून्यता के सिद्धांत का विस्तार किया और इसे बौद्ध धर्म की समझ में सुधार करने का प्रयास किया। उन्होंने शून्यता के सिद्धांत के अनुसार धर्म के सभी सिद्धांतों को जांचा और समझा। उन्होंने शून्यता के अभिप्राय के बारे में कहा कि इसका अर्थ है कि कुछ भी स्थिति या पदार्थ अस्तित्व में नहीं होता। शून्यता के अनुसार सब कुछ अनित्य होता है और कोई भी वस्तु आत्मा के रूप में स्थायी नहीं होती। नागार्जुन ने कई उपन्यास लिखे हैं, जिनमें से उनकी सबसे महत्वपूर्ण रचनाएं मूलमध्यमक और शून्यता सम्पूर्णता हैं। मूलमध्यमक नामक उपन्यास में, वे शून्यता के सिद्धांत पर जोर देते हुए, बौद्ध धर्म के मूल सिद्धांतों का विश्लेषण करते हैं। वे यह सिद्ध कराते हैं कि सभी धर्म सिद्धांत अस्थायी होते हैं और अस्तित्व का आभास कराते हैं, और उन्हें शून्यता के संबंध में समझाना चाहिए।

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Published

2018-03-30

How to Cite

Pinki. (2018). नागार्जुन के उपन्यासों में दलित विमर्श: एक विस्तृत अध्ययन. Innovative Research Thoughts, 4(1), 528–534. Retrieved from https://irt.shodhsagar.com/index.php/j/article/view/1325