बाल विकास एवं विकास के चरण :एक विवेचना

Authors

  • सुशीला देवी व्याख्याता , शिक्षािाश्त्र

Keywords:

बाल शिकास, शिकासात्मक

Abstract

बाल शिकास, मनुष्य के जन्म से लेकर शकिोरािस्था के अंत तक उनमें होने िाले जैशिक और मनोिैज्ञाशनक पररिततनों को कहते हैं, जब िे धीरे-धीरे शनर्तरता से और अशधक स्िायत्तता की ओर बढ़ते हैं। च ंशक ये शिकासात्मक पररिततन काफी हद तक जन्म से पहले के जीिन के दौरान आनुिंशिक कारकों और घटनाओं से प्रर्ाशित हो सकते हैं इसशलए आनुिंशिकी और जन्म प ित शिकास को आम तौर पर बच्चे के शिकास के अध्ययन के शहस्से के रूप में िाशमल शकया जाता है। संबंशधत िब्दों में जीिनकाल के दौरान होने िाले शिकास को सन्दशर्तत करने िाला शिकासात्मक मनोशिज्ञान और बच्चे की देखर्ाल से संबंशधत शचशकत्सा की िाखा बालरोगशिज्ञान (पीडीऐशिक्स) िाशमल हैं। शिकासात्मक पररिततन, पररपक्िता के नाम से जानी जाने िाली आनुिंशिक रूप से शनयंशरत प्रशियाओं के पररणामस्िरूप या पयातिरणीय कारकों और शिक्षण के पररणामस्िरूप हो सकता है लेशकन आम तौर पर ज्यादातर पररिततनों में दोनों के बीच का पारस्पररक संबंध िाशमल होता है। बच्चे के शिकास की अिशध के बारे में तरह-तरह की पररर्ाषाएँ दी जाती हैं क्योंशक प्रत्येक अिशध के िुरू और अंत के बारे में शनरंतर व्यशिगत मतर्ेद रहा है।

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Published

2017-12-31

How to Cite

देवी स. (2017). बाल विकास एवं विकास के चरण :एक विवेचना . Innovative Research Thoughts, 3(11), 591. Retrieved from https://irt.shodhsagar.com/index.php/j/article/view/1253