प्राचीन भारत में गणित का विकास (1500 ई॰ पू॰ से 600 ई॰ पू॰)

Authors

  • Bajrang Lal प्रवक्ता, राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालयटिटौली, रोहतक

Keywords:

अंगुल, पुरुष व्याम

Abstract

इस आलेख के माध्यम से शोधार्थी द्वारा गणित के महत्व पर प्रकाश डाला गया है। लेखक ने 1500 ई.पू. से 600 ई. पू. तक के साहित्यिक प्रमाणों का अध्ययन करके गणित के क्रमिक विकास को आलेख के माध्यम से सटीक ढंग से समझाने का प्रयास किया है जिसमें वह पूर्णतया सफल रहे हैं। गणित के बारे में संक्षेप में लिखकर ज्यादा समझाना शोधार्थी के गहन अध्ययन का नतीजा है। उनका यह छोटा सा आलेख गागर में सागर के समान है।

References

शर्मा विजय लक्ष्मी, अन्तर्राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य में प्राचीन भारतीय विज्ञान, पृ0 53

ज्ीवउंेए थ्ण्त्ण्ैण्म्ए ।दबपमदज प्दकपंद ूमपहीजेए चतपजीअप चतंांेींद अंतंदेप 1970 चंहम दव 13

ऋ वे0 1/110/5, 1/100/18, 10/33/6,

वही0 2/14/11, 10/68/3

अ. वे. 1/2/4, 20/136/3

ऋ. वे. 10/62/7

ऋ. वे. 10/22/16-28

यजु. स. 17/2, तैत. स.ः- 4/4/2/4, पंच ब्रा.: 17/14/1/2

Downloads

Published

2017-09-30

How to Cite

Lal, B. (2017). प्राचीन भारत में गणित का विकास (1500 ई॰ पू॰ से 600 ई॰ पू॰). Innovative Research Thoughts, 3(6), 9–11. Retrieved from https://irt.shodhsagar.com/index.php/j/article/view/125