समुद्री पारिस्थितिक तंत्र पर मैंग्रोव पेड़ों का महत्व

Authors

  • PINKI

Keywords:

जलवायु, तटीय आद्रयभ सम, समझौता, बहाली, प्रवाल, मैंग्रोव, तलछट, आपदा

Abstract

मनुष्य द्वारा मैंग्रोव वनों का प्रयोग अनेक रूपों में किया जाता है। पारम्परिक रूप से स्थानीय निवासियों द्वारा इनका प्रयोग भोजन, औषधि, टेनिन, ईंधन तथा इमारती लकड़ी के लिये किया जाता रहा है। तटीक इलाकों में रहने वाले लाखों लोगों के लिये जीवनयापन का साधन इन वनों से प्राप्त होता है तथा ये उनकी पारम्परिक संस्कृति को जीवित रखते हैं। मैंग्रोव वन धरती तथा समुद्र के बीच एक उभय प्रतिरोधी (बफर) की तरह कार्य करते हैं तथा समुद्री प्राकृतिक आपदाओं से तटों की रक्षा करते हैं। ये तटीय क्षेत्रों में तलछट के कारण होने वाले जान-मान के नुकसान को रोकते हैं। मूंगे की चट्टानों को समुद्री पारिस्थितिकी तंत्रों में सबसे अधिक जैव विविधता वाला क्षेत्र कहा जाता है। ये पारिस्थितिकी तंत्र समुद्री वातावरण में जैविक तथा अजैविक कारकों के बीच बहुत नाजुक संतुलन का उदाहरण है। इन क्षेत्रों में तथा आस-पास पाये जाने वाली बहुत सी जीव प्रजातियों के लिये प्रजनन तथा उनके छोटे बच्चों के लिये आदर्श शरण स्थल, मैंग्रोव वनों द्वारा उपलब्ध कराया जाता है। मैंग्रोव जड़ें तलछट तथा अन्य प्रदूषक तत्वों से प्रवाल भित्तियों यानी मूंगों की रक्षा करती हैं। बदले में मूंगे की चट्टानें तेज समुद्री लहरों के वेग को कम कर मैंग्रोव क्षेत्रों की रक्षा करती है। इस प्रकार मैंग्रोव और मूंगे एक-दूसरे की सहायता कर अपना अस्तित्व कायम रखते हैं ।

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Published

2022-12-30

How to Cite

PINKI. (2022). समुद्री पारिस्थितिक तंत्र पर मैंग्रोव पेड़ों का महत्व. Innovative Research Thoughts, 8(4), 143–148. Retrieved from https://irt.shodhsagar.com/index.php/j/article/view/1182