जयनंदन की कथा में समाज और संस्कृति का विश्लेषण

Authors

  • अमरजीत कुमार शोधार्थी (हिंदी विभाग), मगध विश्वविद्यालय, बोधगया
  • डॉ0 ज्ञान प्रकाश रत्नेश (हिंदी विभाग), के0 एल0 एस0 कॉलेज, नवादा

Keywords:

मूल कथा, बाजार और पूंजी, संघषों, साधारण मनुष्यों, पाठक समुदाय, सूचनात्मक

Abstract

हिदी उपन्यास हमारे समय के मनुष्य-समाज का एक सच्चा विश्लेषक रहा है। अपनी कथा-गरिमा के अनुकूल समाज के विभिन्न वर्गों और तबकों की समस्याओं से देश की जनता और पाठक को निरंतर साक्षात कराने में हिंदी उपन्यास की मुख्य भूमिका रही है। कई बार हम यह भी अनुभव करते हैं कि हमारे मनुष्य समाज का कोई वर्ग किस प्रकार का जीवनयापन कर रहा है, उसकी असलियत किस यथार्थ पर टिकी है, उसकी लाचारियां क्या हैं, क्या विवशताएं हैं- इन सबकी जानकारी हमें किसी रचनात्मक कृति के माध्यम से ही हो पाती है। आज हम यह पाते हैं कि साहित्य अपनी प्रचलित और नयी विधा में अधिक सूचनात्मक हो रहा है। इससे समाज के विभिन्न वर्गों की आपसदारी नये विवेक का निर्माण भी कर रही है- इसमें संदेह नहीं है। यह भी हम जानते हैं कि सतत बदलावों के दौर में साहित्य का परंपरागत रूप भी बदला है। इसीलिए साहित्य की विधाएं भी इससे पर्याप्त प्रभावित रही हैं। भिन्न-भिन्न प्रांतों के रचनाकारों ने वैश्विक स्तर पर हो रहे परिवर्तन के प्रभावों को स्थानीय स्तर पर आंकने का सार्थक श्रम किया है। 

जयनंदन इस क्रम के एक समर्थ रचनाकार हैं, उन्होंने अपनी कहानियों और उपन्यासों के माध्यम से आज के पाठक समुदाय को नयी जानकारियों से समृद्ध करने का काम किया है। इनका हाल ही में प्रकाशित 'विघटन' उपन्यास अपनी नितांत नयी कथाभूमि के कारण चर्चित होकर प्रसिद्ध हुआ है। इस उपन्यास की मूल कथा बाजार और पूंजी के बीच पिसते साधारण मनुष्यों के संघर्षों से संबंधित है। अपने साधारण से साधारण जीवन को बनाये रखने के लिए आम आदमी को कितनी मशक्कत करनी पड़ती है- इसकी सटीक अभिव्यक्ति है यह उपन्यास।

इस उपन्यास में वैश्विक स्तर पर बढ़ते बाजारवाद की मनोवृत्ति के कारण प्रभावित स्थानीयता को रेखांकित करते हुए रचनाकार ने संप्रदायवाद की खाई के खतरों से भी अवगत कराया है। आज हम यह देखते हैं कि सांप्रदायिकता का विष ऐसे धुल चुका है कि लगता है जैसे हिंदू-मुस्लिम की बात करना भी मानसिक कष्ट का कारण बन जाता है। जबकि हमें इस सच को भी आत्मसात करना चाहिए कि हमारा देश अनेक धर्मों, जातियों और संस्कृतियों का देश है। यहां की बहुसंख्यक आबादी हिन्दुओं की है। उसके बाद मुसलमान हैं। दोनों जातियों के निवास करने से हमारे यहां एक मिली-जुली संस्कृति का विकास होता रहा किंतु ये दोनों ही संप्रदाय मूल रूप से एक हो नहीं सके। इस कृति में उपन्यासकार ने संप्रदायगत आस्था और विश्वास को अंकित करते हुए यह स्पष्ट किया है कि सत्ताधारियों और सत्ता-लोभियों ने अपने लाभ के लिए हमेशा इन्हें टकराव की स्थिति में रखना ही बेहतर समझा। 

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Published

2022-03-30

How to Cite

अमरजीत कुमार, & डॉ0 ज्ञान प्रकाश रत्नेश. (2022). जयनंदन की कथा में समाज और संस्कृति का विश्लेषण. Innovative Research Thoughts, 8(1), 88–94. Retrieved from https://irt.shodhsagar.com/index.php/j/article/view/1107