कबीर के साहित्य में सामाजिक भेद भाव का विरोध : नारी के प्रति दृष्टिकोण एवं दुर्गुणों का त्याग का महत्व

Authors

  • Seema Research Scholar,Dept. of HindiM.D. University,Rohtak (HR) .INDIA

Keywords:

स़ीखन, अवधायणा

Abstract

कबीर जिस युग में पैदा हुए थे, वह मुस्लिम काल था. वे जिस जुलाहा जाति में पले-बढ़े थे, वह एक दो पीढ़ी पहले मुसलमान हो चुकी थी लेकिन न केवल कबीर की जुलाहा जाति बल्कि हिन्दू समाज की जो भी दलित जातियाँ इस्लाम स्वीकार कर चुकी थी, उनके पुराने संस्कारों, रीति रिवाजों और धार्मिक- विश्वासों में अधिक बदलाव नहीं आया था. वे जातियाँ न पूरी तरह हिन्दू थी और न पूरी तरह मुसलमान. स्वयं कबीर की जुलाहा जाति में, जो इस्लाम कबूल करने के पहले नाथपंथी जोगी(योगी) जाति थी, नाथ पंथ और हठयोग की बहुत सारी बाहें पहले की तरह सुरक्षित थी. हिन्दू-समाज में इस प्रकार की दलित जातियों का स्थान बहुत नीचा था और ये ऊची जातियों के भेद-भाव  और अन्याय- अत्याचार का शिकार थी. इसलिए इनमें सामाजिक असमानता के प्रति विद्रोह का भाव होना स्वाभाविक था

References

कबीर ग्रंथावली –सं० बाबू श्यामसुन्दरदास

कबीर ग्रंथावली –सं० माता प्रसाद गुप्त

संत काव्य –सं० आचार्य परशुराम चतुर्वेदी

कबीर के काव्य में सांप्रदायिक सद्भाव (लघु-शोध प्रबंध)- राजेन्द्र प्रसाद

Downloads

Published

2017-09-30

How to Cite

Seema. (2017). कबीर के साहित्य में सामाजिक भेद भाव का विरोध : नारी के प्रति दृष्टिकोण एवं दुर्गुणों का त्याग का महत्व. Innovative Research Thoughts, 3(5), 57–60. Retrieved from https://irt.shodhsagar.com/index.php/j/article/view/108