स़ीखना : अवधायणा, प्रकृतत, स़ीखने के प्रकाय औय स़ीखने को प्रबाववत कयने वारे कायक
Keywords:
स़ीखना, अवधायणा, प्रकृततAbstract
वऩछरे दो दिक भें फच्चों के फाये भें भान्मताएॉ औय स़ीखने के फाये भें
हभायी सभझ फदरी है। मे तो थऩष्ट है कक हभायी सोच , भान्मताएॉ औय
सकायात्भक भाहौर स़ीखने को ब़ी प्रबाववत कयते हैं। ‘स़ीखना एक
थवाबाववक किमा है’। फच्चे थवाबाववक रूऩ से कुछ च़ीजें थवत् स़ीख रेते हैं।
माऩी जैसे सभम के अनुरूऩ िायीरयक ववकास थवत् होता है वैसे भानमसक
ववकास भें कुछ च़ीजों का स़ीखना ब़ी थवत् होता है , मभसार के तौय ऩय
फच्चे का भातृबाषा स़ीखना। ऩय इसका भतरफ मह बफल्कुर नहीॊ है कक सफ कुछ थवत् ही स़ीख रेते हैं
मा स़ीख रेंगे। स़ीखने के सन्दबत भें मह ब़ी कहा जाता है कक ‘स़ीखना’ हय जगह होता यहता है मा
‘स़ीखना’ आज़ीवन होता है। फच्चे जफ अऩने आसऩास के साभास्जक एवॊ बौततक वातावयण से औय अरग-
अरग कामों से जुड़ते हैं तो उनकी थवाबाववक ऺभता भें ववकास होता है। ऩय मह कैसे होता है ? इस ऩय
ववचाय कयना होगा। साथ ही मह ब़ी सोचना होगा कक क्मा सब़ी तयह का स़ीखना एक सभान होता है ?
क्मा हभ स़ीखने के मरए स़ीखते हैं मा कोई फाहयी प्रेयणा स़ीखने की ओय हभें धकेरत़ी है ? औय महद
फाहयी प्रेयणा हभें स़ीखने की ओय धकेरत़ी है तो ऩरयणाभ ककस तयह के होते हैं ? आइमे ववचाय कयें कक
थकूर के फाहय क्मा-क्मा स़ीखते हैं ? औय इससे ब़ी भहत्वऩूणत फात ववचायण़ीम है कक मे सफ कैसे स़ीख
रेते हैं?
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