कौटिल्य अर्थशास्त्र के परिप्रेक्ष्य में गौर्यकालीन न्याय व्यवस्था

Authors

  • Dr. Vijay Devi

Keywords:

न्याय व्यवस्था, गौर्यकाल, पैतृक संपत्ति, न्यायालय

Abstract

मौर्य साम्राज्य न्याय व्यवस्था के लिये प्रसिद्ध था। कौटिल्य का मत था कि उचित न्यात व्यवस्था करने के लिये सरकार द्वारा न्याय की समुचित व्यवस्था की जानी चाहिये ताकि लोगों के जीवन और सम्पति की रक्षा की जा सके। के अर्थशास्त्र के परिप्रेक्ष्य में तत्कालीन न्याय व्यवस्था का वर्णन करना भोप पत्र का मुख्य विशय है। मौर्य साम्राज्य में न्याय के लिये अनेक न्यायालयों की सत्ता थी। सबसे छोटे न्यायालय ग्रामों के थे। ग्रामिक ग्रामवृद्धों के सौध मिलकर अपुरोधियों को दण्ड देते थे और उनसे जुर्माने वसूल करते थे ग्राम के न्यायालय से ऊपर संग्रहण न्यायालय के अन्तर्गत 10 गाँव होते थे। द्रोणमुख न्यायालय 400 ग्रामों को मिला कर बनाया जाता था। दोणमुख, स्थानीय न्यायालय में 800 गांव होते थे और जनपद-रान्धि के न्यायालय होते थे ग्राम न्यायालय से ऊपर दोणमुख न्यायालयों की (स्थानीय व खावंटिक न्यायालयों की) राता थी और उनसे ऊपर जनपद न्यायालय और पाटलिपुत्र में केन्द्रीय न्यायालय था।

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Published

2021-12-30

How to Cite

Dr. Vijay Devi. (2021). कौटिल्य अर्थशास्त्र के परिप्रेक्ष्य में गौर्यकालीन न्याय व्यवस्था. Innovative Research Thoughts, 7(4), 9–14. Retrieved from https://irt.shodhsagar.com/index.php/j/article/view/1058