छायावादी कविताओ की आधुनिक विकास यात्रा पर एक अध्ययन

Authors

  • Pinki
  • Dr. Mamta Singh सहायक प्रोफेसर, हिन्दी - विभाग

Keywords:

विसंगतियों, अंधविश्वासी, तर्कसंगत, मस्तिष्क

Abstract

आधुनिक युग में मनुष्य का जीवन और सामाजिक संबंध जटिल होते जा रहे हैं। इसलिए आधुनिकता का अभिप्राय गलत अथवा सही कार्य से नहीं है, वह तो एक प्रक्रिया है जो दोनों रूपों में होती है। आधुनिकता मनुष्य को अतीत से अलग कर वर्तमान में रह कर प्रगति के पथ पर अग्रसर करती है। आधुनिकता को पश्चिमीकरण अथवा नगरीकरण समझना तर्कसंगत नहीं है। आधुनिकता परंपरा की विरोधी नहीं अपितु उससे आधार लेकर विकसित होने वाली प्रगतिशील विचारधारा है। विसंगति से अभिप्राय दृ जीवन की वह स्थिति जहाँ प्रत्येक धारणा का उल्टा रूप दिखाई देता है। विसंगति को देखा जाए तो वह मानव मस्तिष्क की दुर्बलताओं की उपज है। जीवन में व्यक्ति को संघर्षों का सामना करते हुए जीना पड़ता है यही उसकी सबसे बड़ी विरोधाभास की स्थिति है की न तो वह अपने दायित्वों का निर्वाह ठीक प्रकार से कर पा रहा है और न ही दायित्वों से स्वयं को अलग कर पाया। उसकी त्रिशंकु के समान स्थिति ने उसे हास्यास्पद बना दिया। यह मानव जीवन की विडंबना ही है कि न तो आज वह अपने परिवेश से अलग हो सकता है और न साथ रह सकता है। मानव जीवन की इसी विरोधाभासी स्थित के कारण विसंगतियों का पादुर्भाव हुआ। आज व्यक्ति अपने परिवेश में स्वयं को असहाय व फालतू समझने लगा है तथा वह अपने अस्तित्व की रक्षा करने में लगा हुआ है। स्वदेशी परिवेश को आधुनिक जीवन की विसंगतियों ने प्रभावित किया है। धार्मिक अंधविश्वासी भावनाओं ने मनुष्य को अज्ञानता के गहरे कूप में धकेला, सामाजिक विषमताओं, आर्थिक समस्याओं तथा पारिवारिक कलह के कारण व्यक्ति का जीवन विसंगत हो गया।

References

ऽ ज्ञानोदय (रवींद्र कालिया - कोजी कॉर्नर (एक विसंगति): जुलाई 1965 - पृष्ठ -103

ऽ कमलेश्वरः नई कहानी की भूमिका- पृष्ठ- 15

ऽ कृष्ण बिहारी मिश्रः आधुनिक सामाजिक आंदोलन और आधुनिक हिन्दी साहित्य- पृष्ठ - 130

ऽ (श्री गोपाल शरण सिंह ‘दहेज की कुप्रथा से हानियाँ’ शीर्षक)

ऽ डॉ. दंगल झाल्टेः नए उपन्यासों में नए प्रयोग: नए उपन्यास नयी प्रणालियाँ-पृष्ठ- 5

ऽ नई कविता ओर अज्ञेय--हिन्दी साहित्य बीसवीं शताब्दी--डॉ० नन्द दुलारे वाजपेयी, पु० 248

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ऽ तार-सप्तक, सं० अज्ञेय, पु०

ऽ दूसरा तार-सप्तक, सं० अज्ञेय, पृ० 6

ऽ तार-सप्तक, सं० अज्ञेय, पृ० 7

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ऽ अज्ञेय ओर आधुनिक रचना की समस्या, डॉ० रामस्वरूप चतुर्वेदी, पृ० 7

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Published

2021-07-30

How to Cite

Pinki, & Dr. Mamta Singh. (2021). छायावादी कविताओ की आधुनिक विकास यात्रा पर एक अध्ययन. Innovative Research Thoughts, 7(3), 63–70. Retrieved from https://irt.shodhsagar.com/index.php/j/article/view/1053