उत्तर आधुनिक परिदृश्य और 21वीं सदी की कविता
Keywords:
मानवीय मूल्, स्वार्थAbstract
आज समाज मे ं राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक, शैक्षिक क्षेत्र में व्यवस्था का कुचक्र फैल रहा है। राजनते ाओ ं की स्वार्थ लोलुपता, धन-लिप्सा एवं अपराधीकरण के कारण लुप्त मानवीय संवेदना एवं जीवन मूल्यों में गिरावट आती जा रही है। भ्रष्ट राजनीतिक प्रक्षय प्राप्त सामाजिक व्यवस्था मे ं व्यक्ति अकुलाहट, घुटन, सत्रं ास भरा जीवन जीने के लिए विवश है। लूट, अपराध हिंसा, शोषण, आतंक आदि आर्थिक संपन्नता से उत्पन्न मानवीय मूल्यों को रसातल में ले जाने वाले विविध कारक हैं। बढ़ती जनसंख्या एवं वैज्ञानिक प्रयोग के अतिवाद ने कर्कश कंकरीट के जंगलों का निर्माण कर प्रकृति को विनाश की ओर ले जाने का प्रयास किया है। महानगरों मे ं मानव जीवन मशीनवत परिवतिर्त हो गया है, जिसके कारण पारिवारिक व सामाजिक सबं ंधो ं में तनाव व विघटन की स्थिति दख्े ान े को मिलती है। समाज की इन सब परिस्थितियों का प्रभाव हमे ं 21वीं सदी की कविता मे ं दिखाई दते ा है।
References
लीलाधर जगडू ़ी: ईश्वर की अध्यक्षता मे,ं लखनऊ मंे लखनऊ, पृ.86
लीलाधर जगडू ़ी: अनभ्ु ाव के आकाश मे ं चाँद, संशय के सस्ं थान मे ं मौसम, पृ.41
कुँवर नारायण: कोई दूसरा नहीं, पृ.106
सं0 यतीन्द्र मिश्र, कुँवर नारायण: संसार भाग-1, पृ.119
सं0 यतीन्द्र मिश्र, कुँवर नारायण: संसार भाग-1, पृ.144
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