हिन्दी उपन्यासों में गाँधीवादी विचारधारा

Authors

  • रेनु शोधार्थी (पी॰एच॰डी॰, हिन्दी) कुरूक्षेत्र विश्वविद्यालय, एम॰ए॰, एम॰फिल॰ (हिन्दी) नेट (जे॰आर॰एफ॰) , हिसार (हरियाणा)

Keywords:

उपन्यास जीवन, स्वतंत्रता सेनानी

Abstract

उपन्यास जीवन और समाज के व्यक्त रूपों का चित्रण है। कलाकार मुख्य रूप से समाज की परिस्थितियों का परिणाम होता है और साहित्य मानव जीवन की अनुभूतियों का चित्रण। किसी भी साहित्यकार का मुख्य उद्देश्य केवल मनोरंजन न होकर षिक्षा व समाज कल्याण भी होता है।
स्वातंत्र्य संघर्ष के युग में लेखकों की रचनाओं में राष्ट्रीय मुक्ति आन्दोलन की चेतना की झलक देखने को मिलती है। यह एक ऐसा दौर था जब सभी स्वतंत्रता सेनानी अपने देष को आजाद कराने के लिए जी-जान से जुटे हुए थे। इस युग में गाँधी जी के योगदान को भूलाया नहीं जा सकता। उस समय उपन्यासों में गाँधी दर्षन के माध्यम से समाज में जागृति की लहर लाना उपन्यासकारों का मुख्य उद्देष्य था, क्योंकि किसी भी देष के विकास को जानने के लिए उस देष का उपन्यास पढ़ना चाहिए। उपन्यासों के माध्यम से ही पाठकों को समाज की यथार्थताओं से रूबरू होने का मौका मिलता है।
हिन्दी उपन्यास का उद्भव विभिन्न विद्धान संस्कृत साहित्य की कादम्बरी व पंचतंत्र से मानते हैं सही मायने में देखा जाए तो आधुनिक उपन्यास का उद्भव पाष्चात्य षिक्षा की देन है। सामाजिक जागरण के संदर्भ में रचित अनेक उपन्यासों में गाँधी दर्शन के विविधि आयाम देखने को मिलते हैं।

References

महात्मा गाँधी, ग्राम स्वराज्य, पृ॰ 183

वही, पृ॰ 26

श्रीनाथ सिंह, जागरण, पृ॰ 139

प्रेमचंद, कर्मभूमि, पृ॰ 204

प्रेमचंद, प्रेमाश्रम, पृ॰ 63

फणीश्वर नाथ रेणु, मैला आंचल, पृ॰ 12

प्रेमचन्द, सेवासदन, पृ॰ 230

प्रेमचन्द, गोदान, पृ॰ 115

अज्ञेय, शेखर: एक जीवनी (उत्थान), पृ॰ 116

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Published

2021-06-30

How to Cite

रेनु. (2021). हिन्दी उपन्यासों में गाँधीवादी विचारधारा. Innovative Research Thoughts, 7(2), 1–4. Retrieved from https://irt.shodhsagar.com/index.php/j/article/view/1031